वास्तु शास्त्र एक प्राचीन भारतीय शास्त्र है जो भवन निर्माण और इनसे संबंधित सभी कार्यों के लिए दिशानिर्देश प्रदान करता है। यह शास्त्र प्राचीन समय से ही अस्तित्व में है और पुराने समय से अधिकांश वास्तुकारों द्वारा इसका पालन किया जाता था। इस विद्या के अंतर्गत वास्तुकला, स्थापत्य और वास्तुविद्या जैसे क्षेत्रों में भवन निर्माण के नियम और निर्देश शामिल हैं।
वास्तु शास्त्र को आमतौर पर “वास्तु” के नाम से जाना जाता है। यह एक ऐसा शास्त्र है जो मनुष्य के निवास स्थान की योजना, निर्माण और सजावट के बारे में ज्ञान प्रदान करता है। वास्तु शास्त्र का मुख्य उद्देश्य संतुलन, सुख, और शांति को बढ़ाना है जो एक व्यक्ति के और उसके आसपास के पर्यावरण में उपस्थित होती हैं। इसका मुख्य ध्येय सुख, समृद्धि और कार्यक्षेत्र में सफलता को प्राप्त करने के लिए एक शुभ और सुन्दर वातावरण बनाना है। मान्यता है कि यदि निवास स्थान संतुलित होता है तो जीवनशैली, स्वास्थ्य, समृद्धि में भी सुधार होता है।
वास्तु शास्त्र की प्रमुख मान्यताएं
वास्तु पुरुष मंडल : इसके अनुसार भवन की निर्माण नीतियों एक क्रम के मुताबिक होनी चाहिए। यह मंडल भवन के आकार, आरोहण, अवरोहण, दिशाओं, निर्माण में भूमि के आयाम, निर्माण का उद्देश्य, वातावरण और आवश्यकताओं का ध्यान रखकर निर्धारित किया जाता है।
पंचमहाभूत : वास्तु शास्त्र में मान्यता है कि प्रत्येक भवन पंचमहाभूत (भूमि, जल, वायु, अग्नि, आकाश) की उपस्थिति को समान रूप से स्वीकार करनी चाहिए। ईशान में जल, आग्नेय में अग्नि, नैऋत्य में पृथ्वी, वायव्य में वायु और केंद्र में आकाश यही पंच महाभूत हैं और इनके संतुलन से भवन में सकारात्मक ऊर्जा का विकास होता है।
दिशाओं का महत्व : वास्तु शास्त्र में मान्यता है कि दिशाएं वास्तुकला और निर्माण के लिए महत्वपूर्ण होती हैं। उचित दिशा के लिए दिए गए निर्देशों का पालन करने से जीवन में समृद्धि, सुख और शांति आती है।
यांत्रिकी और सृजनशीलता : वास्तु शास्त्र में मान्यता है कि भवन की यांत्रिकी और सृजनशीलता में सही संतुलन होना चाहिए। यांत्रिकी में संरचना, इंजीनियरिंग और भवन के स्थापत्य विज्ञान के नियमों का पालन किया जाना चाहिए। सृजनशीलता में आकृति, रंग, रेखा-कटाव और बाहरी सुंदरता का महत्व होता है।
वास्तु दोष : वास्तु शास्त्र में मान्यता है कि वास्तु दोष नकारात्मक ऊर्जा का कारण होते हैं। इन दोषों को शांत करने के लिए और नकारात्मक प्रभावों से बचने के लिए यथासंभव सुझाव दिए गए हैं, जैसे दरवाज़ों और खिड़कियों के स्थान पर अवरोध, प्राकृतिक रोशनी के उपयोग, शुभ चिन्हों का स्थानांतरण, सही स्थान पर वस्तुओं का निर्धारण सहित कई बातें सम्मिलित हैं।
वास्तु शास्त्र के पालन से हो सकते हैं ये लाभ
सकारात्मक ऊर्जा : वास्तु शास्त्र के नियमों के अनुसार भवन की निर्माण और स्थापना किए जाने से सकारात्मक ऊर्जा का विकास होता है। इससे वहां रहने वाले लोगों की मानसिक, शारीरिक और आध्यात्मिक तत्वों को प्रभावित करने में मदद मिलती है।
सुख-शांति : वास्तु शास्त्र के नियमों का पालन करने से भवन में सकारात्मक ऊर्जा का विकास होता है जो लोगों को सुख, शांति और समृद्धि देती है। सही दिशा, प्राकृतिक प्रकाश, वातावरण का साफ़ और स्वच्छ रहना और ऊर्जा के संतुलन का से शांति और सुख मिलता है।
व्यावसायिक सफलता : वास्तु शास्त्र के नियमों के अनुसार व्यापारिक और व्यवसायिक स्थानों की योजना और निर्माण करने से व्यवसायिक सफलता में सुधार हो सकता है। अच्छी दिशा, दुकान की आकृति, सही स्थान और उपयुक्त वातावरण प्रगति का परिचायक है।
आर्थिक लाभ : वास्तु शास्त्र के नियमों का पालन करने से भवन का निर्माण आर्थिक रूप से फायदेमंद हो सकता है। उचित आकर्षण और दक्षता से निर्मित भवन संपत्ति का मूल्य बढ़ता है।
अधिक सुखद और स्वस्थ जीवन : वास्तु शास्त्र के नियमों का पालन करने से भवन के निर्माण में सभी आवश्यक वास्तुकला और भौतिकी नियमों का पालन होता है जो सुखद और स्वस्थ जीवन की ओर अग्रसर करता है।
आध्यात्मिक विकास : वास्तु शास्त्र के नियमों का पालन करने से आध्यात्मिक विकास या सुधार हो सकता है। भवन में उचित वास्तुदोष न होने से उसमें आध्यात्मिक शक्ति का विस्तार होता है जिससे व्यक्ति का अंतर्मन प्रभावित होता है।