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सिक्किम में बीजेपी का एक भी विधायक नहीं, पार्टी ने वहाँ भी राज्यसभा चुनाव के लिए उम्मीदवार उतार दिया

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गंगटोक
देश लोकसभा चुनाव की ओर बढ़ रहा है और सरगर्मियां राज्यसभा चुनाव को लेकर तेज हो गई हैं. राज्यसभा चुनाव को लेकर पूर्वोत्तर का सिक्किम चर्चा में है. इसकी वजह है चीन की सीमा से सटे इस राज्य से राज्यसभा चुनाव के लिए भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) का उम्मीदवार उतारना. बीजेपी ने सिक्किम की एकमात्र राज्यसभा सीट के लिए दोरजी त्शेरिंग लेप्चा को उम्मीदवार बनाया है.

अब चर्चा इसलिए हो रही है क्योंकि 2019 के सिक्किम चुनाव में बीजेपी खाता तक नहीं खोल सकी थी. जिस सूबे के विधानसभा चुनाव में बीजेपी का एक भी विधायक नहीं जीता था, उस सूबे में पार्टी ने राज्यसभा चुनाव के लिए उम्मीदवार उतार दिया है तो इसके पीछे का प्लान क्या है, क्या समीकरण हैं? बात इसे लेकर भी हो रही है.

राज्यसभा सीट छोड़ने पर कैसे राजी हो गए गोले?

पीएस गोले के राज्यसभा सीट बीजेपी के लिए छोड़ने के मायने भी तलाशे जाने लगे हैं. इस फैसले को गोले की अयोग्यता के मामले से जोड़कर भी देखा जा रहा है. दरअसल, पीएस गोले को भ्रष्टाचार के एक मामले में दोषी ठहराते हुए कोर्ट ने सजा सुनाई थी. पीएस गोले सजा काटकर 10 अगस्त 2018 को जेल से बाहर आए थे. नियमों के मुताबिक भ्रष्टाचार के किसी मामले में दोषी ठहराए जाने पर संबंधित नेता जेल से बाहर आने के बाद छह साल तक कोई चुनाव नहीं लड़ सकता और इसी वजह से पीएस गोले 2019 के विधानसभा चुनाव में खुद नहीं उतरे थे. हालांकि, चुनाव में एसकेएम की जीत के बाद विधायक दल की बैठक में गोले को विधायक दल का नेता चुन लिया गया और वह सीएम बने.

सीएम बनने के बाद पीएस गोले अक्टूबर 2019 में उपचुनाव जीतकर विधानसभा सदस्य निर्वाचित हो गए थे. एसडीएफ ने चुनाव आयोग पर गोले की अयोग्यता अवधि छह साल से घटाकर एक साल करने का आरोप लगाया था और इसे लेकर सुप्रीम कोर्ट में याचिका भी दायर की थी. कहा तो यह भी जा रहा है कि बीजेपी के सहयोग से ही गोले की कुर्सी और विधायकी बची थी और अब उनका राज्यसभा सीट छोड़ना उसी एहसान का बदला चुकाने की कोशिश है.

क्या कहते हैं जानकार

सिक्किम के वरिष्ठ पत्रकार जोसफ लेप्चा ने कहा कि पूर्वोत्तर की सियासत का मिजाज क्षेत्रीय दलों के मुफीद रहा है. अब बीजेपी की कोशिश एसकेएम की उंगली पकड़कर सूबे में अपनी सियासी जमीन तैयार करने की है. 2019 के चुनाव से पहले भी बीजेपी और एसकेएम के बीच गठबंधन को लेकर बातचीत हुई थी लेकिन एसकेएम ने बाद में अकेले चुनाव मैदान में उतरने का फैसला किया था. चुनाव नतीजों के बाद पीएस गोले और पवन चामलिंग की पार्टी के बीच कोई बड़ा गैप नहीं था. पवन चामलिंग सियासत के पुराने खिलाड़ी हैं और एसकेएम में तोड़फोड़ कर सरकार बना सकते थे लेकिन बीजेपी ने उनके 10 विधायक तोड़कर यह सुनिश्चित किया कि गोले सरकार पांच साल तक किसी खतरे से महफूज रहे.

एसडीएफ के 10 विधायकों ने पवन चामलिंग का साथ छोड़कर बीजेपी का दामन थाम लिया तो इसमें दोरजी की भूमिका भी चर्चा में रही. अब पीएस गोले ने एसकेएम की जीत सुनिश्चित होने के बावजूद राज्यसभा सीट बीजेपी के लिए छोड़ दी है तो इसे  सरकार सेफ करने के लिए सहयोगी दल और दोरजी के लिए एक तरह से रिटर्न गिफ्ट की तरह देखा जा रहा है.

क्या है सिक्किम विधानसभा का गणित

दरअसल, 32 सदस्यों वाली सिक्किम विधानसभा के चुनाव 2019 में हुए थे. तब प्रेम सिंह तमांग गोले (पीएस गोले) के नेतृत्व वाले सिक्किम क्रांतिकारी मोर्चा (एसकेए) को 17 और पवन चामलिंग के नेतृत्व वाले सिक्किम डेमोक्रेटिक फ्रंट (एसडीएफ) को 15 सीटों पर जीत मिली थी. इसमें तत्कालीन मुख्यमंत्री पवन चामलिंग समेत एसडीएफ के दो और एसकेएम के एक उम्मीदवार को दो सीट से जीत मिली थी. यानी सिक्किम विधानसभा में एसकेएम का संख्याबल 16 और विपक्षी एसडीएफ का 13 विधायकों पर रुक गया. तीन सीटें दो-दो सीट से निर्वाचित विधायकों के एक-एक सीट से इस्तीफे की वजह से रिक्त हो गईं.

इसके बाद 2019 के ही अगस्त महीने में बड़ा उथल-पुथल हुआ. पवन चामलिंग की पार्टी एसडीएफ के 10 विधायकों ने जेपी नड्डा और राम माधव की मौजूदगी में बीजेपी का दामन थाम लिया. विधानसभा चुनाव में शून्य पर सिमटी बीजेपी 10 विधायकों के साथ एसकेएम के बाद दूसरी सबसे बड़ी पार्टी बन गई. एसडीएफ में पार्टी प्रमुख पवन चामलिंग समेत तीन विधायक बच गए. इन तीन में से दो विधायकों ने भी बाद में सत्ताधारी एसकेएम का दामन थाम लिया. बीजेपी और एसकेएम का दिल्ली में गठबंधन था और पार्टी ने सिक्किम में भी सरकार का समर्थन कर दिया. तीन सीट के उपचुनाव में एसकेएम से गठबंधन कर उतरी बीजेपी ने दो सीटें जीतीं और एक सीट एसकेएम को मिली.

सिक्किम विधानसभा में इस समय मुख्यमंत्री पीएस गोले की पार्टी एसकेएम के 19 और बीजेपी के 12 विधायक हैं. पवन चामलिंग एसडीएफ के इकलौते विधायक हैं. सिक्किम की सियासत में जिस पार्टी की सरकार, उसी पार्टी का लोकसभा और राज्यसभा सांसद रहा है. एसडीएफ का भी केंद्र की सत्ता पर काबिज पार्टियों के साथ गठबंधन रहा लेकिन पवन चामलिंग की पार्टी ने लोकसभा और राज्यसभा की सीट दूर, विधानसभा की एक सीट भी किसी सहयोगी दल के लिए कभी नहीं छोड़ी. बीजेपी सिक्किम से राज्यसभा में अपना प्रतिनिधि भेजने वाली पहली राष्ट्रीय पार्टी बनने को गौरव से जोड़ रही है.

 

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