Home Uncategorized SC से रद्द गुजरात सरकार की सजा माफी, बिलकिस के 11 दोषी...

SC से रद्द गुजरात सरकार की सजा माफी, बिलकिस के 11 दोषी फिर जाएंगे जेल, जज बोले- फैसला गलत था

130
0

नई दिल्ली

 बिलकिस बानो (Bilkis Bano) केस में सुप्रीम कोर्ट ने आज बड़ा फैसला सुनाते हुए इस मामले के 11 दोषियों की रिहाई के आदेश को गलत बताते हुए गुजरात सरकार के फैसले को पलट दिया है। अब इसके मामले के दोषी फिर से जेल जाएंगे। सुप्रीम कोर्ट की जस्टिस बीवी नागरत्ना ने आज फैसला सुनाया। शीर्ष अदालत ने कहा कि एक पीड़ित के तकलीफ का अहसास सभी को होना चाहिए चाहे वह किसी भी धर्म या संप्रदाय की हो। गुजरात में 2002 के सांप्रदायिक दंगे के दौरान बिलकिस बानो के साथ गैंगरेप किया गया था। 2022 में गुजरात सरकार ने स्वतंत्रता दिवस के अवसर पर इस मामले के 11 दोषियों को छोड़ने के आदेश दिया था।

पिछले साल अगस्त में 11 दिन तक चली सुनवाई के बाद जस्टिस नागरत्ना, जस्टिस उज्ज्वल भूयान की पीठ ने फैसला सुनाया। पिछले साल 12 अक्टूबर को शीर्ष अदालत ने अपना फैसला सुरक्षित रख लिया था। जानिए कोर्ट ने अपने फैसले में क्या-क्या कहा..

जस्टिस नागरत्ना की अहम टिप्पणी

-बिलकिस बानो केस के दोषियों की सजा माफ करने का अधिकार गुजरात सरकार के पास नहीं था।

-सुप्रीम कोर्ट के 13 मई 2022 का आदेश धोखाधड़ी से हासिल किया गया था।

एक महिला को सम्मान का अधिकार है। चाहे वह समाज के किसी वर्ग से आती हो। चाहे वह किसी धर्म को मानती हो।

गुजरात सरकार का फैसला रद्द
जस्टिस नागरत्ना ने कहा कि बिलकिस बाने का ट्रायल गुजरात से महाराष्ट्र ट्रांसफर किया गया था। इस केस के महाराष्ट्र ट्रांसफर करने के कई कारण हो सकते हैं। लेकिन असल बात तो ये थी कि इसके ट्रायल में यह तय होता कि किस राज्य सरकार के पास माफी देने का अधिकार है। यहां उचित सरकार का अर्थ ये है कि जहां मामला चल रहा है वहां। वो राज्य नहीं, जहां ये अपराध हुआ हो। ऐसे में गुजरात सरकार के पास माफी का अधिकार ही नहीं था। इसलिए गुजरात सरकार के फैसले को रद्द किया जाता है।

मई 2022 का फैसला फर्जीवाड़े के तहत

जस्टिस नागरत्ना ने कहा कि याचिकाकर्ता राधेश्याम भगवानदास ने इस मामले में गुजरात हाई कोर्ट का रुख किया था। गुजरात हाई कोर्ट ने मामले का निपटारा करते हुए कहा कि इस मामले में महाराष्ट्र सरकार को फैसला लेने का अधिकार है। इस मामले में दूसरी याचिका भी रद्द कर दी गई। इसके बाद याचिकाकर्ता ने बिना बताए इस मामले में सुप्रीम कोर्ट का रुख किया था। याचिकाकर्ता ने अपनी याचिका में कहा कि हाई कोर्ट के जजों में अलग-अलाग ओपिनियन के कारण वे सुप्रीम कोर्ट पहुंच आए थे। मई 2022 का फैसला फर्जीवाड़े के तहत लिया गया था।

जस्टिस नागरत्ना ने अपने फैसले में कहा कि हम अपने फैसले में ये तय करना था कि बिलकिस बानो की याचिका स्वीकार्य है या नहीं। हमने इसे मेंशनेबल माना है। उन्होंने कहा कि एक महिला को सम्मान का अधिकार है चाहे वह समाज के किसी भी तबके की हो और किसी भी संप्रदाय से ताल्लुक रखने वाली हो।

जस्टिस नागरत्ना ने कहा कि हमें सेक्शन 432, 433, 433 (a) आदि का विश्लेषण किया। उन्होंने कहा कि गुजरात सरकार के माफी के आदेश को कोर्ट की सहमति से ऐसा करना चाहिए था। कोर्ट ने कहा कि जहां ये घटना हुई, वहां दोषियों को रिहा करने का अधिकार नहीं था।

जस्टिस नागरत्ना ने कहा कि तथ्यों को छिपाकर जो आदेश दिया गया था उसे हम रद्द करते हैं। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि इस मामले के ट्रायल को गुजरात से महाराष्ट्र ट्रांसफर करने का आदेश दिया।

जस्टिस नागरत्ना ने कहा कि पीड़िता की याचिका सही है। हालांकि इस मामले की समाप्ति यही नहीं हो रही है। ASG ने माफी (Remission) पॉलिसी 1992 को भी कोर्ट के सामने रखा। उन्होंने कहा कि ये अपराध गुजरात में हुआ है। हालांकि, जस्टिस नागरत्ना ने कहा कि माफी का असली अधिकार तो महाराष्ट्र सरकार के पास था।

जस्टिस नागरत्ना ने कहा कि गुजरात सरकार ने 13 मई 2022 के दिन बिलकिस बानो केस के दोषियों को रिहा करके महाराष्ट्र सरकार के काम में दखल दिया था। कोर्ट के विचार में वो फैसला गलत था।

जस्टिस नागरत्ना ने कहा कि इस मामले के दोषी हाई कोर्ट के फैसले से अगर असंतुष्ट थे तो वहीं पर और अपील दाखिल कर सकते थे लेकिन उन्होंने ऐसा नहीं किया। वो माफी के लिए महाराष्ट्र चले गए। वहां माफी के फैसले के खिलाफ विचार थे। इसके बाद वो सुप्रीम कोर्ट चले आए। ऐसे में दोषियों ने शीर्ष अदालत से धोखा किया। हाई कोर्ट के फैसले को आर्टिकल 32 में अलग नहीं रखा जा सकता है।

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here