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रथ को खिचने के लिए भीड हजारों कि संख्या में ,जगन्नाथ भगवान को उनके मौसी के यहा पहुँचाने के लिए।

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गरियाबंद से कन्हैया तिवारी की रिपोर्ट
गरियाबंद ।
गरियाबंद जिला के देवभोग स्थित जगन्नाथ मंदिर को बनाने के लिए पुराने जमाने के लोग देशी चिवडा , रेंगटा गिट्टी और बेल का लासा से इस वर्षाे पुरानी मंदिर को बनाया था। सबसे पहला पीठ जगन्नाथ पुरी का शक्ति पीठ को माना जाता है इसके बाद देवभोग का जगन्नाथ मंदिर को द्वितीय शक्ति पीठ माना जाता है बाकि जगह अरूण औश्र गरूण का स्तम्भ होता है परन्तु इस देवभोग जगन्नाथ मंदिर मे जीवन्यास अरूण वरूण का स्थापना है जगन्नाथ मंदिर के सामने पश्चिम मुखी हनुमान का जीवन्यास कर स्थापना है जगन्नाथ मंदिर मे एक मुर्ति जगन्नाथ का स्थापना है , देवभोग जगन्नाथ मंदिर मे प्रसाद एवं भोग को ग्रहण का एक अलग प्रथा है बाकि मंदिर के अपेक्षा इस मंदिर मे भोग एवं प्रसाद को बिना शुल्क के प्रदाय किया जाता है रथ यात्रा के दौरान सर्वाराकार परिवार बेहरा परिवार टेमरा के द्वारा गजमुंग एवं लाई ऊपर से छीछ कर प्रसाद दिया जाता है जिसे आम आदमी छत्ते को उल्टा कर प्रसाद को ग्रहण करते है यही सबसे अलग पद्धति है। जगन्नाथ भगवान का जो पुरी मे अनुष्ठान होता है उसी प्रकार देवभोग के जगन्नाथ मंदिर मे अनुष्ठान आयोजित किए जाते है जैसे देव ,पुर्णिमा,नेतृत्व सव,नवजवन दर्शन,श्रृगार आदि। नवान्न भक्षण जो अस क्षेत्र का प्रमुख त्यौहार होता है पुरी मंदिर के द्वारा श्री जगन्नाथ भगवान नवान्न भक्षण जो दिन स्थिर किया जाता है उसी दिन जगन्नाथ मंदिर देवभोग मे भी नवान्न भक्षण भगवान को किया जाता है इसके बाद इस क्षेत्र मे रथ यात्रा के त्यौहार मनाया जाता है लगभग 160 वर्षाे से बेहरा परिवार टेमरा कि ओर से सर्वाराकार कि हेसियत से जगन्नाथ मंदिर देवभोग का संचाालन करते आ रहे है। इसके अलावा देवभोग मे सबसे पहले जगन्नाथ मंदिर से झाराबहाल के जगन्नाथ मंदिर मे जगन्नाथ भगवान को लेकर जाया जाता था और लगभग 10 वर्ष पुर्व उसी जगन्नाथ मंदिर मे एक छोटा सा पत्थर जगन्नाथ भगवान के आकार का निकला था तो लोग उस पत्थर के मुर्ति को भी पुजा करने लगे और आज उसी मंदिर मे उसी स्थान पर राधा कृष्ण का मुर्ति स्थापित कर दिया गया है। साथ साथ लोग वही निकले जगन्नाथ भगवान के आकार का पत्थर को भी लेाग पुजा करते है। लोग जगन्नाथ भगवान को उनके घर से जगन्नाथ भगवान के मौसी के घर उत्साह और उमंग के साथ छोडने के लिए रथ मे लाते है और जगन्नाथ भगवान 9 दिन तक अपने मौसी के यहा रहते है इसके बाद पुनः जगन्नाथ भगवान को दसवा दिन लोग उनके घर को पहुँचा देते है । नौ दिन तक बेहरा परिवार के द्वारा जगन्नाथ भगवान को सेवा करते है और दिन और रात पुजा पाठ किया जाता है। भगवान को चढाने के लिए अन्नदान संग्रहण करते है जो सबसे पहले केन्दुपाटी से आता है इसके बाद 94 गाँव से अन्नदान आता है । दुर दुर से लोग जगन्नाथ भगवान को देखने के लिए देवभोग आते है एक प्रकार से देवभोग आस्था का केन्द्र बन गया है । भगवान जगन्नाथ को सुबह और साम दो वक्त भोग चढाया जाता है।
श्रृगार और वेषभुषा को भेजा जाता है सोनार के यहा :- भगवान को निकालने के पहले जगन्नाथ भगवान के वस्त्र को सोनार के यहा धोने के लिए मंदिर से विधी पुर्वक सोनार के घर रथ निकालने के एक दिन पुर्व भेजा जाता है और सोनार के द्वारा जगन्नाथ भगवान के श्रृगार और वेश भुषा को धोते है। और सोनार के यहा से जब विधि पुर्वक मंदिर को श्रृगार वापस आता है तो उसे पुजा करके जगन्नाथ भगवान को पहनाते है और इसके बाद ही भगवान जगन्नाथ अपने मौसी के यहा 9 दिन तक रहने के लिए जाते है।

लोगो मे श्रध्द्वा:- देवभोग के जगन्नाथ मंदिर मे आस्था के चलते लोग चावल और दाल दान मे देने लगे है और हर आदमी एक दिन अपना तिथि तय कर लिए है किस इस तिथि मे दाल और चावल को दान के रूप प्रसाद बनाने के लिए देना है और माह मे एक भी दिन प्रसाद बनाने के लिए दिन नही छुटता लोग हर दिन दाल और चावल प्रसाद के रूप मे देते है।

प्रसाद लेने और देने कि अलग विधी :- जगन्नाथ भगवान को जब उनके घर से उनके मौसी के घर को लोगो के द्वारा पहुँचाने के वक्त लोगो को जो प्रसाद दिया जाता है तो लोगों के द्वारा छत्ते को उल्टा रखा जाता है और उल्टे छत्ते के सहारे प्रसाद को लिया जाता है और जगन्नाथ भगवान को रथ के सहारे छोडे जाते है उसी रथ के उपर से प्रसाद लाइ और गजामुंग को छीछ कर लोगो को प्रासद निःशुल्क रूप से वितरण किया जाता है। बाकि जगहो पर प्रसाद कि बिक्रि कि जाती है।