रायपुर
छत्तीसगढ़ में वरिष्ठ भाजपा विधायक और 15 वर्ष तक राज्य के मुख्यमंत्री रहे रमन सिंह को सर्वसम्मति से विधानसभा का अध्यक्ष चुना गया है।
आयुर्वेदिक चिकित्सक से नेता बने रमन सिंह ने 2003 से 2018 तक छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री के रूप में अपने 15 साल के लंबे कार्यकाल के दौरान एक सक्षम प्रशासक के रूप में ख्याति अर्जित की है।
मुख्यमंत्री खाद्यान्न सहायता योजना जैसी योजनाओं के प्रभावी कार्यान्वयन के कारण रमन सिंह को ‘चाउर वाले बाबा’ (चावल वाले बाबा) कहा जाता है। इस योजना के तहत उनके कार्यकाल के दौरान सार्वजनिक वितरण प्रणाली के तहत गरीब परिवारों को रियायती दरों पर चावल, नमक और चना दिया जाता था।
रमन सिंह (71) के नेतृत्व में लड़े गए 2018 के विधानसभा चुनाव में भाजपा को बड़ी हार का सामना करना पड़ा था। पंद्रह वर्ष के शासन के बाद पार्टी 15 सीट पर सिमट गई थी और माना जा रहा था कि पार्टी में रमन सिंह कद घटेगा लेकिन वह राज्य में पार्टी के सबसे प्रमुख नेताओं में से एक बने रहे।
वर्ष 2018 में भाजपा की हार का कारण कथित भ्रष्टाचार, संगठन और सरकार के बीच समन्वय की कमी और ओबीसी वोट का एक बड़ा हिस्सा कांग्रेस को जाना बताया गया था।
यहां तक कि भाजपा के कुछ वरिष्ठ नेताओं ने भी सिंह की कार्यशैली और नौकरशाहों पर अत्यधिक निर्भरता को लेकर नाराजगी व्यक्त की थी। लेकिन विकास-केंद्रित नेता के रूप में उनकी प्रतिष्ठा बरकरार रही।
रमन सिंह का जन्म 15 अक्टूबर 1952 को कबीरधाम जिले के ठाठापुर गांव में एक प्रमुख अधिवक्ता विघ्नहरण सिंह के राजपूत परिवार में हुआ था।
उन्होंने 1975 में रायपुर के सरकारी आयुर्वेद कॉलेज से 'बैचलर ऑफ आयुर्वेदिक मेडिसिन एंड सर्जरी' (बीएएमएस) की डिग्री ली।
उनका राजनीतिक करियर 1983-84 में शुरू हुआ जब वह कवर्धा नगर निकाय के पार्षद चुने गये।
वह पहली बार 1990 और 1993 में कवर्धा सीट से मध्य प्रदेश विधानसभा के लिए चुने गए। लेकिन 1998 के चुनाव में वह इस सीट से कांग्रेस के योगेश्वर राज सिंह से हार गए।
उन्होंने 1999 में राजनांदगांव लोकसभा सीट से कांग्रेस के दिग्गज नेता मोतीलाल वोरा को हराया और केंद्र में अटल बिहारी वाजपेयी सरकार में वाणिज्य और उद्योग राज्य मंत्री बने।
छत्तीसगढ़ गठन के बाद 2003 में जब पहली बार विधानसभा चुनाव होने थे तब रमन सिंह को भाजपा प्रदेश अध्यक्ष नियुक्त किया गया था।
इस चुनाव में भाजपा ने अजीत जोगी के नेतृत्व वाली कांग्रेस को हराया और रमन सिंह मुख्यमंत्री बने।
उनकी स्पष्टवादिता और स्वच्छ छवि के साथ-साथ कल्याणकारी योजनाओं को लागू करने की क्षमता ने उन्हें राज्य में लगातार तीन बार सत्ता बनाए रखने में मदद की।
लेकिन कथित नागरिक आपूर्ति घोटाले और चिटफंड घोटाले को लेकर उन्हें आलोचना का भी सामना करना पड़ा।
वर्ष 2022 में भाजपा ने रमन सिंह के करीब विष्णु देव साय को प्रदेश अध्यक्ष पद से और धरमलाल कौशिक को विधानसभा में विपक्ष के नेता के पद से हटा दिया तब ऐसा लग रहा था कि पार्टी नेतृत्व रमन सिंह की शक्ति को कम करना चाहता है।
लेकिन 2023 के चुनाव में सिंह के महत्वपूर्ण भूमिका निभाने के बाद धारणा बदल गई। भाजपा के शीर्ष नेताओं ने चुनाव प्रचार के दौरान सिंह के शासनकाल की प्रशंसा की और मतदाताओं से भाजपा शासन के दौरान किए गए विकास के नाम पर वोट मांगा।
भाजपा ने राज्य में मुख्यमंत्री का चेहरा पेश किए बिना विधानसभा चुनाव लड़ा था। चुनाव में जीत के बाद रमन सिंह मुख्यमंत्री पद के दावेदार माने जा रहे थे लेकिन पार्टी ने वरिष्ठ आदिवासी नेता विष्णुदेव साय के हाथ में राज्य की कमान सौंपी।
भाजपा ने अपने राष्ट्रीय उपाध्यक्ष रमन सिंह को विधानसभा अध्यक्ष की नई भूमिका देने का फैसला किया तब अक्सर विरोध नहीं करने वाले नेताओं में शामिल सिंह ने यह पद सहर्ष स्वीकार कर लिया।
राज्य विधानसभा के लिए अध्यक्ष पद पर नामित होने के बाद रमन सिंह ने सोमवार को पार्टी के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष पद से इस्तीफा दे दिया।