Home छत्तीसगढ़ फासिल्स को बचाने फासिल्स पर ही खड़े हो कर किया मंथन

फासिल्स को बचाने फासिल्स पर ही खड़े हो कर किया मंथन

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मनेंद्रगढ़ से सुरजीत सिंह रैना की रिपोर्ट
ए पी सी सी एफ अरूण पाण्डेय का कोरिया दौरा ।

मनेंद्रगढ़ । करोड़ों वर्ष पूर्व के जीवाश्म को संरक्षित करने की क्षेत्रवासियो की मांग के मद्देनजर वन विभाग के ए पी सीसी एफ व चेयरमैन बायोडायवर्सिटी बोर्ड अरूण कुमार पाण्डेय का दौरा रविवार को हुआ । दौरे का मुख्य उद्देश्य वन मंडल मनेंद्रगढ़ अंतर्गत वन परिक्षेत्र मनेंद्रगढ़ में मिले करोड़ों वर्ष पूर्व जीवाश्म को संरक्षित व बेहतर देखभाल करने के उपाय पर गौर करना था। परंतु वन विभाग के लाव – लश्कर व पर्यावरण के क्षेत्र में काम करने वाली संस्था के सदस्यों के साथ उसी जीवाश्म के ऊपर खड़े हो कर उनको बचाने के उपाय पर‌ चर्चा करना इनकी गंभीर लापरवाही व चूक नजर आई है। जबकि बोर्ड के द्वारा जैव विविधता संरक्षण अधिनियम के तहत दिशा – निर्देशो का पालन करते हुए काम करने को कहा गया था।

क्या है फॉसिल्‍स ?

फॉसिल्‍स से तात्पर्य वह समुद्री जीव जंतु है जो करोड़ो वर्ष पहले समुद्र में रहते थे, तथा प्राकृतिक परिर्वतन एवं पृथ्वी के पुनर्निर्माण में समुद्र के हटने पर उन जीवों के अंश पत्थरों के मध्य दबकर यथावत रह गए थे। फॉसिल्‍स पृथ्वी के परिर्वतन के वैज्ञानिक साक्ष्य है।

देश में चार जगह और हैं ऐसे जीवाश्म –

खेमगांव (सिक्किम)

राजहरा (झारखंड)

सुबांसरी (अरुणाचल प्रदेश)

दार्जिलिंग (पश्चिम बंगाल)

मनेंद्रगढ़ में स्थित इस समुद्री जीवों के जीवाश्म वाले क्षेत्र को जियोलॉजिकल सर्वे आफ इंडिया (जीएसआई)ने 1982 से नेशनल जियोलॉजिकल मोनूमेंट्स में शामिल किया गया है।

28करोड़ वर्ष पुराने जीवाश्मः

मनेंद्रगढ़ में पाया गया जीवाश्म भूवैज्ञानिक समयमान (जियोलॉजिकल टाइम स्केल) के मुताबिक परमियन काल यानी करीब 29.8 से 25.2 करोड़ साल पूर्व का है , इसे जीवाश्म गोंडवाना सुपरग्रुप की चट्टानों में हैं।
छत्तीसगढ़ प्रदेश का 44 फीसदी हिस्सा आज भी घने जंगलों से आच्छादित है। यहां जीवाश्म पर अध्ययन की असीमित संभावनाएं है।
यहां भले ही फॉसिल्स पार्क की महत्ता एवं प्रसिद्धि विश्व स्तर पर हो लेकिन आज भी मरीन फॉसिल्स पार्क स्थानीय एवं आसपास के क्षेत्र के लोगों के लिए अनजान बना हुआ है। कि इस जगह ( आज का मनेंद्रगढ़ ) मे भी समुद्र हुआ करता था। { जीवाश्म (जीव + अश्म = पत्थर)से कार्बनिक विकास का प्रत्यक्ष प्रमाण मिलता है। इनके अध्ययन को जीवाश्म विज्ञान या पैलेन्टोलॉजी कहते हैं। विभिन्न प्रकार के जीवाश्मों के निरीक्षण से पता चलता है कि पृथ्वी पर अलग-अलग कालों में भिन्न-भिन्न प्रकार के जन्तु हुए है।

मनेंद्रगढ़ में मिले जीवाश्म को संरक्षित करने बायोडायवर्सिटी हैरिटेज घोषित कर जैव विविधता पार्क बनाने के लिए सर्वे के पूर्व चेयरमैन अरुण कुमार पाण्डेय द्वारा क्षेत्र का मुआयना करने से स्थानीय लोगों को उम्मीद की किरण नजर आ रही है।इस दौरान वन मण्लाधिकारी विवेकानन्द झा , एस डी यो विश्वकर्मा , वन परिक्षेत्र अधिकारी मनेंद्रगढ़ हिरालाल सेन‌, वन परिक्षेत्र अधिकारी बिहारपुर व अन्य स्टाफ उपस्थित रहा।