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बीजेपी जीती तो कौन होगा छत्तीसगढ़ का मुख्यमंत्री, क्या इनमें से हो सकता है कोई एक नाम?

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रायपुर

छत्तीसगढ़ विधानसभा चुनाव के रुझानों में भारतीय जनता पार्टी की सरकार बनती दिख रही है. समाचार लिखे जाने तक पार्टी 48 सीटों पर आगे थी. वहीं कांग्रेस 40 और अन्य 2 सीटों पर आगे हैं. इन सबके बीच सवाल ये उठ रहा है कि राज्य में अगर बीजेपी की सरकार बनी तो सीएम कौन होगा?

राज्य में बीजेपी के वरिष्ठ नेता और पूर्व सीएम रमन सिंह ने इस मामले पर स्पष्ट कहा है कि चुनाव उनके नहीं बल्कि सामूहिक नेतृत्व में लड़ा गया है. ऐसे में माना जा रहा है कि रमन सिंह  खुद इस रेस से पीछे हट गए हैं.

पूर्व सीएम ने कहा कि जनता ने प्रधानमंत्री मोदी की गारंटी पर भरोसा किया है, भूपेश बघेल की बातों पर भरोसा नहीं किया। प्रथम चरण के रुझान में ये स्पष्ट दिख रहा है। निश्चित रूप से भाजपा के राष्ट्रीय नेतृत्व का आशीर्वाद मिला है.चुनाव आयोग के अनुसार बीजेपी 50 और कांग्रेस 38 सीट से आगे चल रही है. 

मुख्यमंत्री भूपेश बघेल पाटन सीट पर आगे
छत्तीसगढ़ विधानसभा चुनाव के लिए रविवार को हो रही मतगणना के शुरुआती रुझानों में सत्ताधारी दल कांग्रेस और भाजपा के बीच कांटे की टक्कर है.  

चुनाव आयोग के अनुसार मुख्यमंत्री भूपेश बघेल पाटन सीट पर भाजपा के विजय बघेल से 187 वोट से आगे हैं. प्रदेश भाजपा अध्यक्ष अरुण साव लोरमी सीट पर कांग्रेस के थानेश्वर साहू से आगे हैं.

एक चुनाव अधिकारी ने बताया कि 90 सदस्यीय छत्तीसगढ़ विधानसभा चुनाव में वोटों की गिनती रविवार सुबह आठ बजे शुरू हुई, सुरक्षाबल के जवान राज्य के 33 जिलों में मतगणना केंद्रों पर कड़ी निगरानी रख रहे हैं, जिनमें वामपंथी उग्रवाद (एलडब्ल्यूई) से प्रभावित जिले भी शामिल हैं.

राज्य में सात और 17 नवंबर को दो चरणों में मतदान हुआ था. मतदान प्रतिशत 76.31 प्रतिशत रहा.

राज्य में मुख्यमंत्री भूपेश बघेल, उपमुख्यमंत्री टीएस सिंहदेव (दोनों कांग्रेस से) और पूर्व मुख्यमंत्री रमन सिंह (भाजपा) समेत कुल 1,181 उम्मीदवारों की चुनावी किस्मत का फैसला आज होगा.

 

राज्य में कयास यह भी हैं कि बीजेपी महाराष्ट्र और हरियाणा मॉडल की तरह कोई ऐसा नाम सामने लेकर आ सकती है जिसकी दूर-दूर तक कहीं कोई चर्चा ना रही हो। टिकट बंटवारे के ज्यातादर फैसले हाईकमान से ही हुए हैं। ऐसी हालत में विधायकों की किसी एक नेता के साथ गोलबंदी दिखे ऐसा होता भी नहीं दिख रहा है। आइए इस बात का एनालिसिस करते हैं कि भाजपा यदि सत्ता में आती है तो उसके पास पांच वो कौन से नाम हैं जिन्हें वह मुख्मंत्री बना सकती है। 

 केंद्रीय नेतृत्व के प्रिय बघेल

विजय बघेल की उम्मीदवारी मजबूत है। उसकी दो वजहें हैं। विजय बघेल सीएम भूपेश बघेल की ही जाति ओबीसी की कुर्मी समाज से आते हैं। वह मुख्यमंत्री के खिलाफ पाटन से ताल ठोंक रहे हैं। सासंद हैं। साफ-सुथरी छवि है। राज्य के स्थानीय नेताओं का विरोध नहीं है। हाईकमान के विश्वस्त माने जाते हैं। राजनीति जानकार बताते हैं कि उनके खिलाफ एक ही चीज जाती है कि उनकी अपील पूरे छत्तीसगढ़ में नहीं है। वह एक क्षेत्र के ही नेता हैं।

पूर्व सीएम को नहीं कर सकते हैं खारिज

तीन बार के मुख्यमंत्री रहे रमन सिंह को भले ही पार्टी ने मुख्यमंत्री के तौर पर प्रोजेक्ट नहीं किया लेकिन उनकी प्रत्याशिता को सिरे से खारिज नहीं किया जा सकता। राजनीतिक टीकाकार रवि भोई कहते हैं कि शुरुआती समय में रमन सिंह जरुर बीजेपी में उपेक्षित थे लेकिन जब चुनाव बेहद करीब आया तो हाईकमान ने टिकट देने में रमन सिंह की भी सुनी। केंद्रीय नेतृत्व यह बात जानता है कि रमन सिंह तीन कार्यकाल सरकार चला चुके हैं और उन्हें राज्य चलाने की बेहतर समझ है। वह राज्य में लोकप्रिय रहे हैं। भले ही 2018 का चुनाव हारने के बाद उनकी सक्रियता कुछ कम रही हो लेकिन मुख्यमंत्री चुनते समय उनके अनुभव को दरकिनार कर देना कठिन होगा। 

अपने अध्यक्ष पर दांव लगा सकती है बीजेपी 

बीजेपी के प्रदेश अध्यक्ष अरुण साव सीएम पद के लिए भी दावेदार बन सकते हैं। अरुण साव ओबीसी समाज से आते हैं। सीधे-सरल हैं। पार्टी के अंदर की गुटबाजी में विश्वास नहीं करते। इन चुनावों के 6 महीने बाद ही लोकसभा के चुनाव होने हैं। बीजेपी को एक साफ सुथरी छवि वाला ऐसा मुख्यमंत्री चाहिए जो हाईकमान के निर्देश को पूरी तरह से अमल में लेकर आए। इसके लिए साव बेहतर व्यक्ति हो सकते हैं। ओबीसी की जिस जाति से वह आते हैं उसकी संख्या छत्तीसगढ़ में ठीक-ठाक है। जातीय समीकरणों का लाभ भी उनके पक्ष में जा सकता है। 

नए चेहरे पर दांव लगाने की कोशिश

ब्यूरोक्रेट ओपी चौधरी तब चर्चाओं में आए थे जब उन्होंने 2018 के चुनावों के पहले नौकरी से इस्तीफा देकर बीजेपी ज्वाइन कर ली थी। चौधरी युवाओं में लोकप्रिय हैं। सोशल मीडिया में बहुत बड़ी फैन फालोइंग है। जिस तरह से महाराष्ट्र में अपेक्षाकृत युवा चेहरे देवेंद्र फड़नवीस को मुख्यमंत्री बनाया गया था ऐसी सूरत में इस संभावना से इंकार नहीं किया जा सकता कि पार्टी ओपी चौधरी को ही यह जिम्मेदारी सौंप दे। ओपी चौधरी ओबीसी समाज से आते हैं। राजनीति में एक विजन लेकर आए हैं। उनके हिस्से की कमजोरी यह है कि वह पारंपरिक राजनेता नहीं हैं। संगठन को चलाने का अनुभव नहीं है। उम्र भी अपेक्षाकृत राज्य के नेताओं की तुलना में कम है। 

मिल सकता है किसी आदिवासी को भी मौका

छत्तीसगढ़ में बीजेपी किसी आदिवासी नेता पर भी दांव लगा सकती है। राम विचार नेताम का नाम ऐसी हालत में सबसे ऊपर आ सकता है। इसके अलावा बीजेपी किसी नए आदिवासी चेहरे पर भी दांव लगा सकती है। किसी अन्य चेहरे पर दांव लगाने की बात पर वरिष्ठ पत्रकार दिवाकर मुक्तिबोध कहते हैं कि भाजपा यदि चुनाव जीतती है तो वह मुख्यमंत्री चुनने के मामले में चौंका भी सकती है। मुख्यमंत्री चुनते समय केंद्रीय नेतृत्व इस बात का ख्याल रखना चाहेगा कि 6 महीने बाद ही लोकसभा के चुनाव होने हैं। बीजेपी पिछली बार की तरह इस बार भी चुनावों में प्रदर्शन करना चाहेगी। जिसमें मुख्यमंत्री की कार्यशैली के साथ उसकी जाति भी अहम होगी। 

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