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भगवान न प्रभाव में न अभाव में वे भक्त के भाव में खाते हैं : डा. संजय सलिल

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रायपुर

कोई किसी के यहां खाता है न उसमें भी कंडीशन होती है। पहला खाया जाता है किसी के प्रभाव में, दूसरा किसी के अभाव में, भगवान कहते है कि मेरे पास कोई कमी है क्या, मेरी ही कृपा से त्रिलोकी भंडारे चल रहे है, दुर्योधन से भगवान श्री कृष्ण कहते है कि न मैं प्रभाव में खाता हूं और न ही मैं अभाव में खाता हूं मैं तो एक मात्र भक्त के भाव में खाता हूं। तू मुझे क्या खिलाएगा। मैं जा रहा हूं विदुर जी के यहां खाने। दुर्योधन ने सैनिकों से कहा इन्हें बांध दो, तो श्रीकृष्ण कहने लगे न मैं तंत्र से बंधता हूं और न ही मंत्र से और न शक्ति से मैं तो बंधता हूं भक्ति से। मुझे कोई बांध सकता है तो वह मेरी माँ है। लोग कहते हैं भगवान असफल हो गए, लेकिन भगवान की असफलता में ही भक्तों की सफलता है।

श्याम खाटू मंदिर में चल रही भागवत कथा में कथाव्यास डा. संजय सलिल ने बताया कि भगवान के आने का कारण क्या था – क्योंकि भगवान जानते थे कि युद्ध होगा, युद्ध में सबकी काट है लेकिन विदुर की काट नहीं है। क्योंकि विदुर के रहते कौरवों का जीतना संभव नहीं था। भगवान के आने का कारण समझौता कराना नहीं था, विदुर को वहां से निकलना था।

रामचरित्र मानस का उल्लेख करते हुए कथा व्यास सलिल ने कहा कि रामजी ने हनुमान जी को लंका भेजा, क्यों भेजा? माता सीता का पता लगाने के लिए। थोड़ी देर के लिए भूल जाओ कि राम भगवान है, अगर आप लीला में ही देखो, क्या लीला में रामजी को पता नहीं है माता सीता लंका में है। रामजी लीला में जानते थे जानकी जी कहां है, तो फिर हनुमान जी को भेजने का कारण क्या था। हनुमान को लंका भेजने का कारण केवल एक ही था, वालमिकी रामायण में हनुमान जी ने अपनी सूझ-बूझ से जानकी जी की खोज की। लंका में महल के द्वार पर एक सुंदरी सो रही थी तो हनुमान समझ गए कि यही जानकी जी तो नहीं है फिर वे खोजने निकल गए वाटिका में और वहां उन्होंने माता जानकी की खोज कर ली।  लेकिन रामचरित मानस में बताया गया है कि केवल चार लोग ही जानते थे कि जानकी जी कहां है, पहला रावण, दूसरा इंद्रजीत, तीसरा कुंभकर्ण और चौथा विभीषण है।

एक उदाहरण प्रस्तुत करते हुए कहा कि घटना उस समय की है जब 2000 का नोट चलता था, एक आदमी दुकान बंद करने के समय वहां पहुंचा और लगभग 2000 रुपये का सामान लिया और दुकानदार को 2000 का नोट दिया। सेठजी ने पर्स में न रखकर उसे जेब में रख लिया और घर पहुंचा। वहां पर उसका पोता आया और 2000 का नोट देखकर उसे लपका, जब तक जेठजी उसको रोकते तब तक उसका पोता उसका दो टुकड़े कर चुका था। नोट का एक हिस्सा तो मिला नहीं और एक हिस्से को उसने हनुमान चालीसा की पुस्तक में दबा दिया। दीपावली की सफाई के दौरान गोदरेज की आलमारी के पीछे हिस्से में वह आधा हिस्सा मिल गया, सेठजी ने हनुमान चालीसा से उस आधे हिस्से को निकाला और जोड़कर कहा जय हनुमान।

संसारियों की आदत धाम में भी नहीं छूटती
एक बार जब मैं कैलाश की यात्रा पर था वहां पूजन करके बैठा था कि एक आदमी आकर पूछता है कि आपका मोबाइल चालू है क्या, बेटा को फोन करना है, बेटे को फोन करके वह बोलता है रिलायंस का बाजार भाव अभी क्या चल रहा है। मुझे गुस्सा इसलिए आया कि वह प्रभु के धाम में खड़े होकर शेयर मार्केट की बात कर रहा है। संसारियों की खास आदत होती है जहां पर वे जाते है संसार की चर्चा करते रहते है।