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अयोध्या, मथुरा, काशी.. हरिशंकर जैन और उनके बेटे विष्णु शंकर जैन, जिसने हिंदू पक्ष से केस लड़ने का नहीं लिया एक भी पैसा

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वाराणसी
 अयोध्या तो बस झांकी है… काशी-मथुरा बाकी है, ये भाजपा का शुरुआत से नारा रहा है। अब ये नारा लोगों की जुबान तक पर चढ़ गया है। उत्तर प्रदेश में इस समय तीन हाई प्रोफाइल मामले हैं, जिनमें अयोध्या पर फैसला आ गया है। ज्ञानवापी मस्जिद परिसर का एएसआई सर्वे हो चुका है और मथुरा शाही ईदगाह मस्जिद के सर्वे के लिए इलाहाबाद हाई कोर्ट ने आदेश दे दिया है। इन सबके बीच सबसे ज्यादा चर्चा पिता-पुत्र की जोड़ी हो रही है।

लखनऊ हाई कोर्ट से शुरू की थी प्रैक्टिस

हरिशंकर जैन (70) और उनके बेटे विष्णु शंकर जैन (38) हिंदू पक्ष की ओर से मामले की पैरवी करते हैं। पिता-पुत्र हिंदू धर्म और पूजा स्थलों से संबंधित 100 से ज्यादा मामले निशुल्क लड़ रहे हैं। कुछ पर फैसला भी आ चुका है। 1978-79 में इलाहाबाद हाई कोर्ट की लखनऊ बेंच से अपनी कानूनी प्रैक्टिस की शुरुआत करने वाले हरि शंकर बाद में सुप्रीम कोर्ट चले गए। प्रयागराज के रहने वाले हरि शंकर जैन अब दिल्ली में रहते हैं। वह अपनी मां विभावती देवी को हिंदू पक्ष के हित में काम करने के लिए प्रेरित करने का श्रेय देते हैं।

'राम जन्मभूमि मुद्दा उठाने के निर्णय पर नाराज हो गए थे पिता'

हरि शंकर जैन ने बताया कि मेरे पिता नेम चंद्र जैन न्यायिक सेवाओं में थे, लेकिन वे इसके खिलाफ थे। वे चाहते थे कि मैं कोर्ट में जज बनूं। जब मैंने राम जन्मभूमि मामले को उठाने का फैसला किया तो मेरे पिता ने दो दिनों तक खाना नहीं खाया। मैंने अपनी मां के दिखाए रास्ते पर चलने का फैसला किया। 1989 में अयोध्या विवाद में हिंदू महासभा के वकील के रूप में नियुक्त होने पर हरि शंकर को राष्ट्रीय पहचान मिली। तब से पिता और पुत्र दोनों ने हिंदू पक्ष से जुड़े 100 से अधिक मामलों में सक्रिय रूप से भाग लिया या दायर किया है।

मौजूदा जानकारी के अनुसार, ज्ञानवापी केस को हिंदुओं की तरफ से लड़ने वाले वरिष्ठ वकील हरिशंकर जैन को वकालत करते-करते 4 दशक बीत गए हैं। उन्होंने 1976 में वकालत शुरू की थी। वहीं उनके बेटे विष्णु जैन का जन्म 9 अक्टूबर 1986 को हुआ था और उन्होंने 2010 में कानून की पढ़ाई पूरी करके वकालत में अपने करियर का आरंभ किया था। विष्णु पढ़ाई से फारिक होकर अपने पिता की सहायता में तब से लेकर आज तक लगे हैं। साल 2016 में उन्होंने सुप्रीम कोर्ट अधिवक्ता का पेपर पास करके नई उपाधि हासिल की थी और उसके बाद उनकी प्रैक्टिस की शुरुआत ही श्रीराम जन्मभूमि मामले से हुई थी।

हिंदुओं से संबंधी करीब 102 मामले ऐसे हैं जिनमें हरिशंकर जैन और विष्णु जैन में से कोई एक या फिर दोनों अदालत में पेश हुए हों। इनमें सबसे पुराना मामला साल 1990 का है। दिलचस्प बात ये है कि ज्यादातर केसों को पिता-पुत्र की जोड़ी ने जिता कर ही दम लिया। वहीं कुछ हैं जो अब भी चल रहे हैं। 

मथुरा में श्री कृष्ण जन्मभूमि का मामला सबसे बड़े मामलों में से एक है जिसे इस पिता-पुत्र की जोड़ी ने संभाला है। इसके अलावा कुतुब मीनार बनाने के लिए मुस्लिम आक्रांताओं द्वारा तोड़े गए 27 हिंदू और जैन मंदिरों का केस, ताजमहल के शिवमंदिर होने का दावा, वर्शिप एक्ट औक वक्फ एक्ट 1995 को चुनौती देने का मामला भी यही दोनों संभाल रहे हैं। ऐसे ही हिंदुओं की ओर से लखनऊ में स्थित टीले वाली मस्जिद के शेष गुफा होने का दावा भी इनके द्वारा करवाया जा रहा है। सबसे बड़ी बात कि हरिशंकर जैन और विष्णु जैन ने भारत के संविधान की प्रस्तावना में जो सोशलिस्ट और सेकुलर शब्द शामिल किया गया है उस संशोधन की वैधता को भी चुनौती दी है।

ज्ञानवापी मामले के बाद हर जगह सराही जा रही इस जोड़ी से जुड़े और भी कई किस्से हैं। जैसे एक बार विष्णु जैन ने अपने पिता के बारे में बताया था कि श्रीराम जन्मभूमि मामले में उन्हें बाबरी विवादित ढाँचे का पक्ष रखने का प्रस्ताव आया था लेकिन उन्होंने अंतरात्मा न बेचने का फैसला किया और फीस मिलने के बाद भी प्रस्ताव मना कर दिया। इतना ही नहीं 6 दिसंबर 1992 को हरिशंकर की माँ का देहांत हुआ था। वे अपनी माँ से बहुत जुड़े थे क्योंकि उन्हीं से उन्हें हिंदुत्व का और धर्म का ज्ञान मिला था। वे टूटे लेकिन जब उनकी माँ की तेहरवीं खत्म हुई तो 20 दिसंबर 1992 को मुंडा हुआ सिर लेकर हिंदू पक्ष के लिए याचिका डालने इलाहाबद कोर्ट पहुँच गए और तब तक जी जान लगाए रखी जब तक कि कोर्ट ने श्रीराम भगवान की पूजा अर्चना की अनुमति नहीं दी।