रीवा
बीजेपी ने चौंकाते हुए मोहन यादव को मध्य प्रदेश की कमान सौंपी है। उनके साथ जगदीश देवड़ा और राजेंद्र शुक्ला को डिप्टी सीएम बनाया गया है। पार्टी के शुक्ला को जिम्मेदारी देने की एक वजह विंध्य क्षेत्र में बीजेपी के आधार को मजबूत करने में उनके योगदान को मान्यता देना है। विंध्य कभी कांग्रेस का गढ़ हुआ करता था। वे रीवा सीट से पांच बार विधायक चुने गए हैं। इंजीनियरिंग पृष्ठभूमि वाले 59 साल के शुक्ला पिछले 15 सालों में क्षेत्र में एक प्रमुख ब्राह्मण नेता के रूप में उभरे हैं।
शुक्ला ने (दिवंगत) अर्जुन सिंह और (दिवंगत) श्रीनिवास तिवारी जैसे पूर्व कांग्रेसी दिग्गजों के प्रभाव को चुनौती दी है, जिनका 2013 तक इस क्षेत्र पर दबदबा था। हाल के विधानसभा चुनावों में, भाजपा ने विंध्य क्षेत्र की 30 में से 25 सीटें जीतीं। 2018 में पार्टी को 24 सीटों पर जीत मिली थी। शुक्ला ने डिप्टी सीएम पद के लिए अपने नाम की घोषणा से पहले क्षेत्र में पार्टी के बेहतरीन प्रदर्शन पर विश्वास व्यक्त किया था। उन्होंने कहा था, '2018 में, भाजपा ने विंध्य क्षेत्र से 24 सीटें जीती थीं, इसलिए, मुझे पूरा विश्वास था कि हम वही प्रदर्शन दोहराएंगे। जब नतीजे आए तो संख्या 24 से बढ़कर 25 हो गई।'
पार्टी में शुक्ला का उदय बाधाओं को पार किए बिना नहीं हुआ। उन्हें अपनी ही पार्टी के कुछ नेताओं के विरोध का सामना करना पड़ा, जिन्होंने उनके राजनीतिक प्रतिद्वंद्वी अभय मिश्रा को भाजपा में वापस लाकर उन्हें कमजोर करने की कोशिश की। हालांकि, बाद में मिश्रा फिर से कांग्रेस में शामिल हो गए और शुक्ला के वफादार के.पी. त्रिपाठी को हराकर रीवा जिले की सेमरिया सीट से चुनाव जीता। हालांकि, शुक्ला राज्य भाजपा की कोर कमेटी के प्रमुख सदस्य बने रहे, तब भी जब उन्हें शिवराज सिंह चौहान के मंत्रिमंडल में शामिल नहीं किया गया था।
कोर कमेटी में वह एकमात्र विधायक थे, जबकि बाकी या तो राज्य या केंद्रीय मंत्री या राज्यसभा सांसद थे। मृदुभाषी राजनेता शुक्ला ने पिछले दो दशकों में रीवा में शुरू किए गए विकास कार्यों के कारण लोकप्रियता अर्जित की। जब वे चौहान के मंत्रिमंडल में ऊर्जा मंत्री थे, तब उन्होंने रीवा में एक एयरपोर्ट और देश की सबसे बड़ी सौर परियोजना लाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी।
शुक्ला ने अपने राजनीतिक जीवन की शुरुआत अपने कॉलेज के दिनों में की और 1986 में सरकारी इंजीनियरिंग कॉलेज छात्र संघ के अध्यक्ष बने। उन्होंने 1998 में अपना पहला विधानसभा चुनाव लड़ा, लेकिन कांग्रेस उम्मीदवार पुष्पराज सिंह से 1,394 वोटों के मामूली अंतर से हार गए। उन्होंने 2003 में अपनी हार का बदला लिया, जब उन्होंने पुष्पराज सिंह को हराया और पहली बार विधानसभा में एंट्री की। तब से वह अपराजेय रहे हैं। शुक्ला का जन्म 3 अगस्त 1964 को एमपी के रीवा में हुआ। उनके पिता भैयालाल शुक्ला एक ठेकेदार और सामाजिक कार्यकर्ता थे। उन्होंने सिविल इंजीनियरिंग की पढ़ाई की और 1986 में सरकारी इंजीनियरिंग कॉलेज छात्र संघ के अध्यक्ष बने।