नईदिल्ली
1995 से दुनिया भर के सरकारी प्रतिनिधि हर साल यूनाइटेड क्लाइमेट चेंज कॉन्फ्रेंस में जुटते हैं। इसे कॉन्फ्रेंस ऑफ पार्टीज (COP) कहा जाता है। यह दुनिया की सबसे बड़ी और अहम इंटरगवर्नमेंट मीटिंग में से एक है। दुबई में आयोजित COP28 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने COP33 का आयोजन भारत में कराने का प्रस्ताव रखा है। COP33 का आयोजन साल 2028 में होना है। ऐसे में सबसे बड़ा सवाल है कि इसका मेजबानी किस तरह हासिल की जाती है? दरअसल यूनाइटेड नैशन फ्रेमवर्क कन्वेंशन ऑन क्लाइमेट चेंज (UNFCCC) संयुक्त राष्ट्र (UN) की सबसे बड़ी सालाना मीटिंग है। इसमें हर साल 20 से 30 हजार लोग हिस्सा लेते है। इतने बड़े आयोजन को करवाना किसी भी देश के लिए एक चुनौती है।
कैसे मिलती है COP की मेजबानी
COP की मेजबानी के लिए सबसे पहले किसी देश को होस्ट कंट्री एग्रीमेंट (HCA) करना होता है। इस एग्रीमेंट में COP को होस्ट करने से जुड़ी सभी ताजा जानकारियां होती है। पिछले COP के बेहतरीन उदाहरण भी इसमें शामिल होते हैं। COP की अध्यक्षता पांच UN रीजनल ग्रुप के बीच घूमती होती रहती है। इनमें अफ्रीकन स्टेट्स, एशिया-पैसिफिक स्टेट्स, ईस्टर्न यूरोपियन स्टेट्स, लेटिन अमेरिकन और कैरेबियाई स्टेट्स के अलावा वेस्टर्न अमेरिकन और अन्य स्टेट्स शामिल हैं।
देश रखता है अपना प्रस्ताव
COP की मेजबानी के लिए इच्छुक देश पहले अपना प्रस्ताव रखते हैं। COP का वेन्यू तय करने से पहले सचिवालय टीम प्रस्तावित कॉन्फ्रेंस वेन्यू पर विजिट करती है, वहां के लॉजिस्टिक, टेक्निकल और फाइनैंशल एलिमेंट आदि की जानकारी लेती है। इसके बाद यह रिपोर्ट COP ब्यूरो में सबमिट होती है। COP की नोटिफिकेशन से पहले मेजबान देश को होटल, ट्रांसपोर्ट, वीजा, प्री सीजनल मीटिंग की तारीख और वेन्यू, कमर्शल बेस पर ऑफिस और पवेलियन की व्यवस्था की जानकारी शेयर करनी होती है।
प्रस्ताव न मिलने पर ये होता है
अगर किसी भी देश से यह प्रस्ताव नहीं मिलता जो इसे डिफॉल्ट कंट्री जर्मनी के बॉन शहर में कराया जाता है। ऐसा भी हो चुका है कि जो रीजनल ग्रुप COP की प्रेसिडेंसी लेता है, वह इसे आयोजित नहीं करवा पाता, ऐसे में भी COP उस साल बॉन में में आयोजित की जाती है। उदाहरण के लिए फीजी ने COP23 की प्रेजिडेंसी ली लेकिन लॉजिस्टिक कारणों की वजह से इसे बॉन में करना पड़ा।
डेढ़ साल मिलता है तैयारी के लिए
आमतौर पर COP के आयोजन से 18 महीने पहले सचिवालय मेजबान देश के प्रस्तावों के फैक्ट चेक करता है। वेन्यू की संभावनाओं को तलाशता है। COP से करीब 12 महीने पहले वेन्यू तय किया जाता है। COP के पिछले कुछ आयोजकों के अनुसार भले एक साल पहले मेजबानी का वेन्यू तय हो जाता है, लेकिन छुट्टियों और दूसरी चीजों की वजह से इसकी तैयारियों के लिए सिर्फ नौ महीने का समय मिलता है, जो कम माना जाता है। माना जाता है कि तैयारियों के लिए कम से कम दो साल का समय मिलना चाहिए। एक बार मेजबान देश का नाम तय होने के बाद वह COP के हेड डेलिगेशन के साथ प्री-COP मीटिंग करता है। प्री-COP मीटिंग के लिए अधिकतम 50 देशों को आमंत्रित किया जाता है। देश को COP के लिए तैयारियां कितने समय में करनी है और उसकी टाइमलाइन क्या है यह मेजबानी मिलने की तारीख के आधार पर तय किया जाता है।
एक्सपर्ट ने बताया भारत के लिए क्यों है अहम
एनवायरनमेंट एंड वॉटर (CEEW)के फेलो, काउंसिल ऑन एनर्जी डॉ वैभव चतुर्वेदी ने कहा कि COP33 काफी महत्वपूर्ण है। इसका मतलब है कि पेरिस समझौते के तहत मिटिगेशन, एडॉप्शन और कार्यान्वयन के साधनों से जुड़े लक्ष्यों की दिशा में हमारी क्या प्रोग्रेस है, इसका मूल्यांकन भी होगा। इसलिए यह भारत के लिए अपने वैश्विक नेतृत्व को दिखाने का एक शानदार अवसर होगा। COP33 जलवायु वार्ता प्रक्रिया में अगला बड़ा आधिकारिक राजनीतिक अवसर साबित होने जा रहा है। इसमें कोशिश रहेगी कि देश भर के विभिन्न हितधारकों को जलवायु चर्चा के करीब लाया जाए। G20 की मेजबानी के दौरान भी भारत ने यही कोशिश की थी।