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सरकार एसजीबी के निवेशकों को दिसंबर और फरवरी में देगी किस्त; सीरीज 3 और 4 के लिए इस दिन से कर सकेंगे निवेश

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सरकार एसजीबी के निवेशकों को दिसंबर और फरवरी में देगी किस्त; सीरीज 3 और 4 के लिए इस दिन से कर सकेंगे निवेश

नई दिल्ली
 केंद्र सरकार इस महीने यानी दिसंबर में सॉवरेन गोल्ड बॉन्ड (एसजीबी) की एक किस्त जारी करेगी और इसके बाद फरवरी में एक बार फिर दूसरी किस्त जारी करेगी। इसके अलावा वित्त मंत्रालय के एक बयान में बताया कि वित्त वर्ष 24 के सीरीज III के लिए एसजीबी में सदस्यता की तारीख 18-22 दिसंबर है, जबकि सीरीज IV के लिए सदस्यता की तारीख 12-16 फरवरी 2024 है। आपको बता दें कि सीरीज I के लिए सदस्यता 19-23 जून के दौरान और सीरीज II के लिए सदस्यता 11-15 सितंबर के दौरान खुली थी।

कौन बेचता है एसजीबी?

एजीबी के भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) भारत सरकार की ओर से इश्यू करता है। एसजीबी को शेड्यूल कमर्शियल बैंक (छोटे वित्त बैंकों, भुगतान बैंकों और क्षेत्रीय ग्रामीण बैंकों को छोड़कर), स्टॉक होल्डिंग कॉरपोरेशन ऑफ इंडिया लिमिटेड (एसएचसीआईएल), क्लियरिंग कॉरपोरेशन ऑफ इंडिया लिमिटेड (सीसीआईएल), नामित डाकघरों, नेशनल स्टॉक एक्सचेंज, इंडिया लिमिटेड और बॉम्बे स्टॉक एक्सचेंज लिमिटेड के माध्यम से बेचा जाता है।

कितनी होती है एसजीबी की प्राइस?

एसजीबी की कीमत रुपये में तय कि जाती है। यह कीमत इंडिया बुलियन एंड ज्वैलर्स एसोसिएशन लिमिटेड (आईबीजेए) तय करता है जिसका आधार सदस्यता अवधि से पहले सप्ताह के अंतिम तीन वर्किंग डे होता है। 999 शुद्धता वाला सोना जितने पर बंद हुआ है उसके औसत मूल्य से कीमत तय होती है।

ऑनलाइन निवेशकों को सस्ता मिलता है एसजीबी

वित्त मंत्रालय के मुताबिक ऑनलाइन सदस्यता लेने वाले और डिजिटल मोड के माध्यम से भुगतान करने वाले निवेशकों के लिए एसजीबी का इश्यू प्राइस 50 रुपये प्रति ग्राम कम होगा।

एक व्यक्ति कितना खरीद सकता है एसजीबी?

नियमों के मुताबिक सदस्यता की अधिकतम सीमा व्यक्ति के लिए 4 किलोग्राम, एचयूएफ के लिए 4 किलोग्राम और ट्रस्ट और समान संस्थाओं के लिए 20 किलोग्राम प्रति वित्तीय वर्ष होती है। एसजीबी की अवधि आठ साल की होती है। आप इसे 5वें साल में उस दिन रिडीम कर सकते हैं जिस दिन ब्याज देय है।

भारत में हर साल पांच करोड़ आईफोन बनाएगी एपल, अमेरिकी कंपनी की देश में विस्तार की योजना

नई दिल्ली

एपल व इसके अन्य आपूर्तिकर्ता भारत में अगले दो-तीन साल में सालाना 5 करोड़ आईफोन बनाएंगे। एपल की रणनीति चीन पर निर्भरता कम कर अन्य देशों में आपूर्ति शृंखला को ले जाना है। रणनीति सफल हुई तो भारत वैश्विक आईफोन उत्पादन में इस दशक के अंत तक एक चौथाई का योगदान कर सकेगा।

एपल की प्रमुख आपूर्तिकर्ता फॉक्सकॉन ने पिछले माह भारत में करीब 13,000 करोड़ के निवेश की घोषणा की थी। उत्पादन से जुड़े प्रोत्साहन योजना के तहत मिल रही सब्सिडी से एपल की आपूर्तिकर्ता कंपनियां भारत में अपनी विनिर्माण क्षमता बढ़ा रही हैं। वॉल स्ट्रीट जर्नल के मुताबिक, कर्नाटक में फॉक्सकॉन के कारखाने से अप्रैल से उत्पादन शुरू होने की उम्मीद है। इसका लक्ष्य सालाना 2 करोड़ मोबाइल फोन बनाने का है। इसमें ज्यादातर आईफोन होंगे। कंपनी दूसरा कारखाना भी लगाने की तैयारी में है। एपल ने पिछले वित्त वर्ष में 58,000 करोड़ रुपये से ज्यादा के आईफोन असेंबल भारत में किया था।

टाटा की तमिलनाडु में भी आईफोन बनाने की योजना
टाटा समूह तमिलनाडु में भी आईफोन बनाने की योजना बना रहा है। दो वर्षों में इसमें 20 असेंबली लाइन होंगी और 50,000 कर्मचारी हो सकते हैं। समूह पहले से ही आईफोन बनाने के लिए कर्नाटक में विस्ट्रॉन की फैक्टरी खरीद चुका है। समूह ने देश में एपल की महत्वाकांक्षाओं का दोहन कर सबसे बड़ा आईफोन असेंबली संयंत्र बनाने की योजना बनाई है।

10 वर्षों में सब्सिडी में बड़ा बदलाव, पेट्रोलियम पर अब महज 1.2 फीसदी, खाद्य पदार्थों पर सबसे अधिक

नई दिल्ली

केंद्र सरकार ने पिछले दस वर्षों में सब्सिडी में बड़ा बदलाव किया है। पहले खाद और खाद्य क्षेत्र के साथ पेट्रोलियम पर भी बराबर सब्सिडी मिलती थी। अब पेट्रोलियम पर महज 1.2 फीसदी जबकि 98 फीसदी से ज्यादा सब्सिडी खाद और खाद्य पर दी जा रही है।

बैंक ऑफ बड़ौदा की एक रिपोर्ट के अनुसार, वित्त वर्ष 2014 तक सब्सिडी का 26.4 फीसदी हिस्सा खाद पर खर्च होता था। 36.1 फीसदी खाद्य क्षेत्र में और 33.5 फीसदी हिस्सा पेट्रोलियम में जाता था। यानी कुल सब्सिडी का 96 फीसदी हिस्सा इन्हीं तीनों पर खर्च होता था। अब खाद्य पर 47 फीसदी, खाद पर 44 फीसदी और पेट्रोलियम पर केवल 1.2 फीसदी हिस्सा खर्च हो रहा है।

पेट्रोलियम पर सब्सिडी कम होने का कारण इसे सरकार के नियमन से बाहर रखना है। वित्त वर्ष 2010-2023 के बीच सालाना 2.5-2.6 लाख करोड़ रुपये सब्सिडी पर खर्च हो रहे थे।  वित्त वर्ष 2017-19 के दौरान यह 5.4 फीसदी घटकर 2.2 लाख करोड़ रुपये हो गया, लेकिन कोरोना के बाद इसमें बेतहाशा बढ़ोतरी हुई। वित्तवर्ष 2020 में कोरोना के प्रभावितों की मदद के लिए सब्सिडी बढ़कर 7.60 लाख करोड़ रुपये हो गई।

राज्यों का सब्सिडी खर्च 5.7 फीसदी बढ़ा
2019 से 2023 के दौरान राज्यों का सब्सिडी पर खर्च 5.7 फीसदी बढ़ गया है। कोविड से पहले यह दो से तीन लाख करोड़ था, जो अब 3.4 लाख करोड़ हो गया। राज्य ज्यादा सब्सिडी बिजली, पानी, कृषि और स्वास्थ्य क्षेत्र में दे रहे हैं। 28 राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों में 10 का योगदान 81 फीसदी है। इसमें महाराष्ट्र 13.9 फीसदी, तमिलनाडु 9.5 फीसदी और गुजरात का 8.3 फीसदी योगदान है।

उत्तर प्रदेश में प्रति व्यक्ति 1,064 रुपये का खर्च
उत्तर प्रदेश सालाना प्रति व्यक्ति सब्सिडी पर 1,064 रुपये खर्च करता है। ओड़िसा में यह 865 रुपये है जबकि उत्तराखंड में 287 रुपये है। हालांकि, हिमाचल में 2,875 रुपये, मध्यप्रदेश 2,655 रुपये, हरियाणा में 3,692 रुपये प्रति व्यक्ति सब्सिडी पर राज्य खर्च कर रहे हैं। पंजाब, कर्नाटक, गुजरात और तमिलनाडु प्रति व्यक्ति 4,000 रुपये से ज्यादा खर्च कर रहे हैं।