इंदौर
मध्य प्रदेश में भारतीय जनता पार्टी ने किसी नेता को मुख्यमंत्री पद के लिए प्रोजेक्ट नहीं किया था। लेकिन, प्रचंड बहुमत के बाद दावेदारों पर सबकी नजर है। ऐसे में भाजपा के राष्ट्रीय महासचिव कैलाश विजयवर्गीय के मध्य प्रदेश में सफलता के लिए मोदी मैजिक को 'क्रेडिट' देने के मायने निकालना लाजमी है। पार्षद से मेयर और कई बार मंत्री रहे कैलाश विजयवर्गीय की छवि फायर ब्रांड नेता के रूप में रही है।
प्रदेश की राजनीति से दरकिनार किए जाने की रणनीति के तहत महासचिव बनाए गए, कैलाश विजयवर्गीय अमित शाह के करीबी माने जाते हैं। संगठन में काम करते हुए विजयवर्गीय ने पश्चिम बंगाल जैसे राज्य की विषम परिस्थितियों में भाजपा को मैदान में ला खड़ा किया। उन्होंने हाल ही के विधानसभा चुनाव में इंदौर-1 एक से चुनाव लड़ कर अपने बड़बोले प्रतिद्वंदी को जोरदार पटकनी दी ही, मालवा निमाड़ समेत प्रदेश में सफल जनसभाएं कर अपने 'स्टार' होने के सबूत दे दिए।
चुनाव के बाद उनका बेबाक बयान चर्चा में आ गया है कि भाजपा की जीत का क्रेडिट मोदी मैजिक और अमित शाह और जेपी नड्डा की रणनीति को जाता है। लाडली बहना के सवाल पर उन्होंने ही जोरदार सवाल दाग दिया कि क्या लाडली बहन छत्तीसगढ़ और राजस्थान में थी? उन्होंने स्वयं को जमीनी हकीकत का जानकार बताते हुए कहा कि मैंने ही सभी सभाओं में दावा किया था कि इंदौर में 9, प्रदेश में 160 और अब पूरे देश में 400 का आंकड़ा पार होगा।
क्या सीएम बनना चाहते हैं कैलाश विजयवर्गीय
उनके प्रदेश में सफलता के लिए मोदी मैजिक को क्रेडिट देने वाले इस बयान से यह सवाल उठना लाजमी था, कि क्या उनकी इच्छा मुख्यमंत्री बनने की है? पूछे जाने पर उन्होंने कहा कि वह किसी रेस में नहीं है और इस तरह के काल्पनिक प्रश्न का जवाब देना उचित नहीं समझते। लेकिन, इंदौर की नौ और मालवा निमाड़ भाजपा की सफलता के बाद उनके उस बयान को भी याद किया जाने लगा है, जिसमें उन्होंने कहा था कि मैं केवल विधायक बनने नहीं आया हूं, पार्टी मुझे बड़ी जिम्मेदारी देगी।
समर्थकों ने उठाई मांग
उनके गहरे मित्र और मध्य प्रदेश में सबसे ज्यादा वोटों से चुनाव जीतने वाले रमेश मेंदोला ने भी इसी बिंदु को आगे बढ़ाते हुए चर्चा में कहा है कि क्षेत्र की जनता चाहती है कि कैलाश विजयवर्गीय मुख्यमंत्री बने। जाहिर है, कोई भी नेता आज की राजनीति में स्वयं को प्रोजेक्ट करने के लिए अपने समर्थकों और साथियों का ही सहारा लेता है। कैलाश विजयवर्गीय का प्रोफाइल इतना मजबूत तो है ही कि उनकी उन्हें मुख्यमंत्री पद का प्रबल दावेदार माना जाए।
मुख्यमंत्री बनने के सवाल पर सभी दावेदार 'मन मन भावे मुड़िया हिलावे' की नीति प्रदर्शित करते हैं। स्वयं को पार्टी का साधारण कार्यकर्ता निरूपित करते हुए आला कमान पर निर्णय को छोड़ देते हैं। इस बीच कैलाश विजयवर्गीय के अलावा प्रह्लाद पटेल के भी दिल्ली जाकर शीर्ष नेतृत्व से मुलाकातों की भी चर्चा है।
वरिष्ठ पत्रकार जयराम शुक्ला ने नवभारत टाइम्स.कॉम से बात करते हुए कहा कि भाजपा ने ऐसा प्रदर्शित किया कि मानों वह सामूहिक नेतृत्व में चुनाव लड़ा, पर वस्तुस्थिति यह थी कि पूरे अभियान में दो ही चेहरे समूचे प्रदेश में प्रभावी और असरकारक रहे, पहला मोदी का दूसरा शिवराज का। अन्य क्षत्रप अपनी सीट के इर्द-गिर्द ही सिमटे रहे।
यह विजय तो शिवराज सिंह चौहान की लाडली बहनों की है, मोदी इफेक्ट के कारण प्रचंड हो गई
उन्होंने कहा कि संक्षेप में कहें तो यह विजय शिवराज सिंह चौहान की लाडली बहनों की ही थी, मोदी इफेक्ट की वजह से यह प्रचंड हो गई। यानी कि प्रचंड -विजय में 'प्रचंड' मोदी हैं तो 'विजय' शिवराज। कैलाश जी चूंकि स्वयं मुख्यमंत्री पद के आकांक्षी हैं सो इसलिए वे शिवराज जी को अपनी ही बराबरी में मानते हैं, 'लाडली बहना' योजना का श्रेय दिया तो संदेश यह जाएगा कि शिवराज उनसे ज्यादा प्रभावी और श्रेष्ठ है। जाहिर है वे ऐसा नहीं दिखना चाहते।
उन्होंने आगे कहा कि जहां तक रही भावी मुख्यमंत्री की बात है, तो लोकसभा चुनाव को देखते हुए मध्यप्रदेश में शिवराज सिंह चौहान मजबूरी नहीं अपितु जरूरी हैं, यह बात मोदी, शाह और नड्डा भली-भांति समझते हैं।
प्रदेश के एक अन्य वरिष्ठ पत्रकार रमन रावल ने बेबाक राय रखते हुए कहा कि कैलाश विजयवर्गीय की टिप्पणी का मर्म वही बता सकते हैं, लेकिन मुझे लगता है कि किसी एक कारण को जीत का प्रमुख तत्व मानने की बजाय अलग-अलग कारण रहे हैं, इसलिए उन्होंने उन पर भी फोकस करते हुए लाडली बहना को एकतरफा श्रेय नहीं दिया।
उन्होंने आगे कहा कि कैलाश विजयवर्गीय ने जो तर्क दिए हैं कि छत्तीसगढ़ और राजस्थान में लाडली बहना नहीं थी, वह उनकी जगह बिल्कुल सही है। उन्होंने कहा कि राजनीति में किसी मुद्दे को देखने का अपना नजरिया और निहितार्थ भी अवश्य होता है।