नई दिल्ली
चार राज्यों के विधानसभा चुनावों के नतीजों से विपक्षी गठबंधन INDIA को लीड कर रही कांग्रेस में एक तरफ उदासी का माहौल है तो दूसरी तरफ उसी गठबंधन के घटक दलों के भीतर इस बात को लेकर संतोष है कि कांग्रेस को अपने किए की सजा भुगतनी पड़ रही है। इन राज्यों के चुनावी नतीजों पर कांग्रेस के साथ-साथ अखिलेश यादव की समाजवादी पार्टी, ममता बनर्जी की टीएमसी, बिहार की राजद और जेडीयू और गठबंधन के अन्य तमाम दलों की नजरें टिकी हुई थीं।
दरअसल, जिस INDIA गठबंधन को बनाने से लेकर घटक दलों के बीच संतुलन और समन्वय के तार जोड़ने की कोशिशें तेज हो रही थीं, उसे अगली मीटिंग तक लटकाकर कांग्रेस ने कुंद कर दिया था। इससे लोकसभा चुनावों के लिए सभी दलों के बीच होने वाली सीट शेयरिंग रुक गई थी। कांग्रेस ने यह दांव जानबूझकर चला था। कांग्रेस को लगता था कि अगर वह चार राज्यों के विधानसभा चुनावों में कम से कम तीन या दो राज्यों में जीत दर्ज करती है तो सहयोगी दलों पर दबाव बनाने में सफल रहेगी और अपनी मर्जी के हिसाब से INDIA गठबंधन में सीट बंटवारे पर अपनी बात मनवा सकेगी लेकिन कांग्रेस की प्लानिंग धरी की धरी रह गई।
विपक्षी दलों के आग्रह को कांग्रेस ने ठुकराया
विपक्षी दलों के नेताओं ने पहले ही कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे से आग्रह किया था कि वे आपसी मतभेदों को दूर करते हुए भाजपा को हराने के लिए इंडिया ब्लॉक को एकसाथ लेकर मजबूती से आगे बढ़ें लेकिन विधानसभा चुनावों में ऐसा नहीं हो सका। अब विधानसभा चुनाव के नतीजे आने के साथ ही गठबंधन के घटक दल खासकर क्षेत्रीय छत्रप आपसी मतभेदों को दूर करने, सीट-बंटवारे पर बातचीत करने और 2024 में भाजपा को हराने के लिए एकजुट होकर आगे बढ़ने के लिए एड़ी-चोटी का जोर लगाएंगे।
अखिलेश-ममता का झेलना पड़ेगा ताप
इस कड़ी और कोशिश में अब क्षेत्रीय दलों से कांग्रेस को झटका मिल सकता है। विधानसभा में चुनावी हार का सामना करने वाली कांग्रेस अब सहयोगी दलों के सामने लाचार नजर आ सकती है। उत्तर प्रदेश में समाजवादी पार्टी के मुखिया अखिलेश यादव सबसे नाराज बताए जा रहे हैं क्योंकि उन्होंने मध्य प्रदेश में गठबंधन करने के लिए हराथ बढ़ाया था जिसे कमलनाथ ने 'अखिलेश-वखिलेश' कहकर खारिज कर दिया था। अब 80 लोकसभा सीटों वाले उत्तर प्रदेश में सपा कांग्रेस को 10-15 से अधिक सीटें नहीं दे सकेगी क्यों कि प्रदेश में कांग्रेस की स्थिति बहुत कमजोर है और वह सपा की बैसाखी पर ही आगे बढ़ सकती है।
पश्चिम बंगाल में भी कांग्रेस को ममता बनर्जी झटका दे सकती हैं। बंगाल में लोकसभा की 42 सीटें हैं। इनमें से 22 पर टीएमसी का कब्जा है, जबकि 18 पर भाजपा का और सिर्फ दो सीटें कांग्रेस के पास है। INDIA गठबंधन के अंदर ही इस राज्य में त्रिकोनात्मक मुकाबला है। टीएमसी और लेफ्ट के बीच दरार चौड़ी है, जबकि कांग्रेस सभी को साथ लेकर चलना चाहती है। ताजा चुनावी नतीजों से स्पष्ट है कि बंगाल में कांग्रेस की नहीं चल सकेगी और दीदी जो कहेंगी, वही कांग्रेस को मानने के लिए मजबूर होना पड़ेगा।
इसी तरह बिहार में कांग्रेस राजद-जेडीयू के सामने नतमस्तक रह सकती है। झारखंड में उसे जेएमएम की बैसाखी पर चलना होगा जबकि दिल्ली और पंजाब में आप का सहारा लेना होगा। तमिलनाडु में डीएमके पहले से ही बड़ी भूमिका में है। केरल में भी उसे लेफ्ट के हिसाब से कदम ताल करना पड़ेगा। जम्मू-कश्मीर में भी कांग्रेस महबूबा मुफ्ती और फारुख अब्दुल्ला के इशारों पर चलने को बाध्य हो सकती है। हालांकि, राजस्थान, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, गुजरात, हिमाचल प्रदेश और गुजरात जैसे राज्यों में कांग्रेस अपने दम पर दमखम भर सकती है।