इंजीनियरिंग शिक्षा के विद्वान, मैकेनिकल इंजीनियरिंग के प्रोफेसर, अनेक इंजीनियरिंग कॉलेज में प्राचार्य के पद को सुशोभित करने वाले, एन आई टी रायपुर के पूर्व निदेशक प्रशासक, सामाजिक चिंतक, दार्शनिक श्लाका पुरुष हमारे चाचाजी प्रोफेसर दर्शन सिंह बल आज नहीं रहे, कोरोना के क्रूर पंजों ने उन्हें हमसे छीन लिया। पिछले कुछ दिनों से एक निजी अस्पताल में उनका इलाज चल रहा था । हम सबको यकीं था वो हमेशा की तरह जीत कर आएंगे । हंसते मुस्कुराते हर मुश्किल दौर में अदम्य साहस के साथ खड़े रहना उनका मूल स्वभाव था । ज्ञान विज्ञान के क्षेत्र में उनके मार्गदर्शन में हजारों शिष्यों ने देश विदेश में प्रतिष्ठित पदों पर गए और नाम रोशन कर रहे हैं । इंजीनियरिंग शिक्षा के सबसे वरिष्ठतम विद्वानों में से एक प्रोफेसर बल सर के नाम से मशहूर आपका संपूर्ण जीवन मानवता और समाज सेवा की मिसाल है । रायगढ़ झलमला के गांव से निकलकर ऐसे समय में उन्होंने खुद को गढ़ा जब इंजीनियरिंग कालेज में प्रवेश लेना पूरे राज्य के गौरव का विषय होता था । तबके अविभाजित मध्यप्रदेश में इंजीनियरिंग कालेज रायपुर से पढ़ाई कर अपने झलमला गांव का नाम उन्होंने रोशन किया फिर संयोग यह भी कि आपने अथक परिश्रम करके इंजीनियरिंग शिक्षा में ही बतौर शोध एवं शिक्षण के क्षेत्र में अद्वितीय स्तंभ के रुप में पहचान स्थापित की.. आपने सबसे लंबा समय इंजीनियरिंग कालेज बिलासपुर में प्रोफेसर के रुप में दिया। एन. आई. टी. रायपुर खुलने के पहले इंजीनियरिंग कालेज रायपुर में प्रोफेसर एवं प्राचार्य हुए और फिर एन.आई.टी. रायपुर के पहले निदेशक हुए। बस्तर इंजीनियरिंग कालेज में भी आपने प्राचार्य के रुप में सेवाएं दी । छत्तीसगढ़ शासन के तकनीकी संचालनालय में भी निदेशक का दायित्व संभाला और सेवानिवृत्त होने के पश्चात आखिरी समय तक इंजीनियरिंग शिक्षा संस्थानों के सलाहकार मंडल और आनलाईन व्याख्यानों से जुड़े रहे । इंजीनियरिंग कालेज बिलासपुर में रहते हुए उन्होंने राष्ट्रीय सेवा योजना का लंबे समय तक दायित्व संभाला । उनके दिव्य आलोक में ऐसे शिष्यों की लंबी श्रृंखला है जिनमें प्रोफेसर बल सर के गुण एवं आदर्श का प्रकाश है । एक शिक्षक से अलग उनकी एक और दुनिया थी जिसमें वो सब लोग थे जो उनसे बेहद प्यार करते थे.. उनके पास बैठकर देश दुनिया की बातें करते थे ।प्रोफेसर बल सर जहां होते थे वहां के आसपास का माहौल गजब की उर्जा और उमंग से भरा होता था ।कोई निराशा उन्हें कभी छू भी नहीं सकती थी..बल नाम से ही ऐसा बल उनके अंदर था कि जो थोड़ी देर भी उनसे मिल कर जाता वह स्वयं में संपूर्ण शक्ति का अहसास करता था.. धर्म और पाखंड के सभी आडंबरों से उन्मुक्त उनका जीवन पूरी एक पाठशाला की तरह था जिसके हम सब छात्र भी थे .. ये वही पाठशाला है जिसमें हमारी प्यारी बहन पिंकी यानी मनजीत कौर बल , भाई जग्गू जगपाल सिंह बल, कक्कू डाक्टर हर्षजीत सिंह बल, भाई गोविन्द पले बढ़े और ऐसे संस्कार मिले जो आज हर पल कमजोरों, पीड़ितों और कोरोना से जंग लड़ रहे लोगों की सेवा अपनी जान की बाजी लगाकर कर रहे हैं । प्रोफेसर बल सर पूरे समय अपने शिष्यों से घिरे रहते थे ।उनके पास खुद के लिए समय नहीं होता था । उनके व्यस्त और मूल्यवान समय को देखते हुए चाचीजी उनके हर बातों का ख्याल रखती थी । जो घर आए सबके सुख दुःख का हाल चाल लेना और जरुरतमंदों की मदद करना ।ये रोज की दिनचर्या थी । कोरोना ने करोड़ों घरों में अंधेरा कर दिया है । आज मेरे घर भी अंधेरा है । चाचाजी आपसे ये उम्मीद नहीं थी ।आपसे तो घर में रोशनी थी ।मुस्कान थी। जीवन में संगीत था । हलचल थी । उमंग थी। उत्सव था.. उत्साह था।विशालता थी ।ये सब छीन गया है ।आप नानक के सच्चे अवतार थे । सच्चे सरदार थे । ईश्वर के ऐसे महादूत, महामानव के महाप्रयाण को सादर नमन ।ईश्वर ऐसी दिव्यात्मा को अपने श्रीचरणों में स्थान दे,और आपकी पाठशाला परिवार को इस असीम दुःख को सहन करने की शक्ति दे..
• डा शाहिद अली
(बिलासपुर निवासी डाॅ शाहिद अली कुशाभाऊठाकरे पत्रकारिता विवि में प्रोफेसर है । बल सर के आत्मीय रहे ।)