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इस महीने तैयार हो जाएगा भारत का हल्का टैंक, ऊंचाई वाले इलाकों में साबित होगा ‘ब्रह्मास्त्र’

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नई दिल्ली

पूर्वी लद्दाख में आंख दिखा रहे चीन की खैर नहीं! 2020 में उसने हाई ऑल्टिट्यूड वाले दुर्गम इलाकों में हल्‍के टैंक तैनात किए। भारत को भी हल्के टैंकों की जरूरत महसूस हुई, 25 टन कैटेगरी में। नए टैंक के निर्माण को अप्रैल 2022 में मंजूरी दी गई। डिफेंस रिसर्च एंड डिवेलपमेंट ऑर्गनाइजेशन (DRDO) ने लार्सन एंड टूब्रो (L&T) को साथ लिया और काम शुरू हो गया। इस महीने के आखिर तक यह ट्रायल के लिए तैयार हो जाएगा। सेना ने अभी इसे 'जोरावर' नाम दिया है। 105 मिलीमीटर की गन से लैस यह टैंक चीन के टाइप 15 टैंकों से कई गुना बेहतर हैं जो लद्दाख में तैनात किए गए हैं। चीनी टैंकों के मुकाबले इन लाइट टैंकों की मोबिलिटी और एक्यूरेसी ज्यादा है।
 

K9 वज्र से अलग है 'जोरावर' टैंक का डिजाइन

सूत्रों के अनुसार, टैंक का डिजाइन एकदम नया है। पहले रिपोर्ट्स थीं कि लाइट टैंक का डिजाइन K9 सेल्फ प्रोपेल्ड गन की चेसिस पर आधारित है। हालांकि, इसे अनूठे चेसिस के साथ बनाया गया है। टैंक का वजन 25 टन से कम रखा गया है ताकि अत्यधिक ऊंचाई वाले क्षेत्रों में ज्यादा मोबिलिटी मिले। इसमें जॉन क्रॉकरिल की बनाई 105mm की गन लगी है।

जोरावर टैंक में हमलों से बचने के लिए एक्टिव प्रोटेक्शन हो सकता है। लड़ाई के मैदान में ज्यादा विजिबिलिटी के लिए इसमें एक अनमैन्ड एरियल वीइकल (UAV) इंटीग्रेट रहेगा। इस टैंक को केवल हाई ऑल्टिट्यूड वाले इलाकों में ही नहीं, सभी तरह की टेरेन में काम करने के लिए बनाया गया है। चूंकि यह बेहद हल्‍का है, इसे फौरन ही हवा के जरिए ट्रांसपोर्ट किया जा सकता है।

 

क्या खास होगा जोरावर में
भारतीय सेना ने लाइट टैंक को नाम दिया है जोरावर। जो भी लाइट टैंक लिए जाएंगे उसे इसी नाम से जाना जाएगा। जोरावर में कई वेपन सिस्टम होंगे। मिसाइल होगी, मेन गन होगी। साथ ही इसमें ड्रोन इंटीग्रेशन भी होगा, जिससे दुश्मन पर लगातार नजर रखी जा सकेगी और ड्रोन की फीड सीधे टैंक में कमांडर के पास आएगी।

क्यों जरूरत है लाइट टैंक की
ईस्टर्न लद्दाख में एलएसी पर चीन के साथ हुए तनाव से यह सबक मिला कि सेना को लाइट टैंक की कितनी जरूरत है। जब चीन पैंगोग के उत्तरी किनारे में बहुत आगे तक बढ़ गया था तब भारतीय सेना ने चीन को चौंकाते हुए पैंगोग के दक्षिण किनारे की अहम चोटियों पर कब्जा कर लिया। यहां भारतीय सेना ने अपने टी-72 और टी-90 टैंक भी पहुंचा दिए। जिससे चीन बैकफुट पर आया और फिर बातचीत की टेबल पर पैंगोग इलाके में पीछे हटने पर सहमति बनी। हालांकि भारतीय सेना ने यहां जो टैंक पहुंचाए वे मुख्य तौर पर मैदानी और रेगिस्तान इलाके में ऑपरेशनल जरूरतों के लिए हैं। हाई एलटीट्यूट एरिया में इनकी अपनी कमियां हैं। यही कमियां इन टैकों में कच्छ के रण में भी दिखाई देगी। इसलिए भारतीय सेना को हाई एल्टीट्यूट और आईलैंड टेरिटरी के लिए लाइट टैंक जोरावर की जरूरत है।

चीन बॉर्डर पर मजबूती के लिए जरूरी
चीन के पास मिडियम और लाइट टैंक है। जिस तरह से चीन ने दो साल पहले एलएसी पर यथास्थिति बदलने की कोशिश की, वैसी कोशिश वह कभी भी कर सकता है। इसलिए नॉर्दन बॉर्डर पर यह खतरा बना हुआ है। भारतीय सेना को यहां मजबूती देने के लिए लाइट टैंक की जरूरत है। दुश्मन जहां पर है अगर उससे ज्यादा ऊंचाई पर भारतीय सेना के टैंक मौजूद होंगे तो दुश्मन कोई भी हरकत करने से बचेगा। लाइट टैंक भारतीय सेना को दुश्मन पर बढ़त देने के लिए जरूरी हैं।

फ्यूचर टैंक आसमानी खतरे से भी निपटेंगे
भारतीय सेना भविष्य के खतरों को देखते हुए फ्यूचर टैंक पर भी काम कर रही है। फ्यूचर टैंक मौजूदा टैंक का रिप्लेसमेंट होगा। 2030 तक इसका पहला प्रोटोटाइप आ जाएगा। ग्लोबल सिनेरियो में देखें तो एरियल थ्रेट यानी आसमानी खतरे ज्यादा बढ़ रहे हैं। ड्रोन का तेजी से इस्तेमाल हो रहा है और इसलिए सभी एंटी ड्रोन सिस्टम पर भी काम कर रहे हैं। अब तक युद्धों में टैंक का टैंक से युद्ध होता रहा है लेकिन अब टैंक को सिर्फ टैंक को नष्ट करना ही नहीं होगा बल्कि सारे खतरों से निपटना होगा। इसमें आसमानी खतरा भी शामिल है। इसलिए फ्यूचर टैंक इस तरह होंगे जो आसमानी खतरों को भी नष्ट कर सकें।