रायपुर.
सरगुजा संभाग के मतदाताओं का मन-मिजाज बदला नजर आ रहा है। मूल सुविधाओं से जूझते क्षेत्र के मतदाताओं ने पिछले चुनाव में बड़ी उम्मीद से कांग्रेस को सभी 14 सीटें न्योछावर कर दी थीं। उन्हें उम्मीद थी कि राजपरिवार के टीएस बाबा (उपमुख्यमंत्री टीएस सिंहदेव) मुख्यमंत्री बनेंगे पर ऐसा हुआ नहीं। मतदाताओं को इस बार भरतपुर-सोनहत से भाजपा प्रत्याशी जनजातीय मामलों की केंद्रीय राज्यमंत्री रेणुका सिंह में नई उम्मीद नजर आई है। उनके समर्थक दावा कर रहे हैं कि भाजपा आई तो प्रदेश को पहली आदिवासी महिला मुख्यमंत्री सरगुजा से ही मिलेगी। केंद्र में मंत्री होने के नाते मतदाता भी दावों में दम देख रहे हैं।
बुनियादी सुविधाओं, बेरोजगारी, शिक्षा और स्वास्थ्य सेवाओं के सुधार में उम्मीद के अनुरूप काम न कर पाने से कांग्रेस की राह आसान नहीं है। सत्ता विरोधी लहर से बचने के लिए पार्टी ने चार विधायकों के टिकट काटे हैं। इससे हुई बगावत थम नहीं रही। भाजपा इसे अवसर के रूप में देख रही है। इस बार 12 सीटों पर नए प्रत्याशी उतारे हैं। इनमें रेणुका सिंह, रायगढ़ से सांसद गोमती साय और पूर्व केंद्रीय मंत्री व प्रदेश भाजपा अध्यक्ष रहे विष्णुदेव साय हैं। अवैध धर्मांतरण पर मुखर भाजपा ने लुंड्रा सीट से जातिगत समीकरणों को ध्यान में रखते हुए मसीही समाज के प्रबोध मिंज को मैदान में उतारा है।
अंबिकापुर : सिंहदेव के सामने भाजपा से उनके ही करीबी राजेश
तीन बार से विधायक सिंहदेव के सामने भाजपा ने उनके ही करीबी और पुराने कांग्रेसी राजेश अग्रवाल को मैदान में उतारा है। अंबिकापुर में उत्तर प्रदेश और मध्यप्रदेश के मूलनिवासियों की संख्या स्थानीय लोगों से अधिक है। अधिकतर व्यापार-कारोबार यही लोग संभाल रहे हैं। आदिवासी मतदाता यहां निर्णायक की भूमिका में हैं। जिस कोयला खदान को लेकर राष्ट्रीय स्तर पर सियासत चल रही है, वह इस क्षेत्र के उदयपुर में है। राजपरिवार के लिए यह सीट प्रतिष्ठा का विषय है। शहर के रवि देवांगन कहते हैं, पिछले चुनाव में जिस उम्मीद से बाबा को जीत दिलाई गई थी, उसके पूरी नहीं होने से निराशा है। यूपी के सोनभद्र के मूल निवासी व्यापारी पप्पू जायसवाल ने कहा, भाजपा प्रत्याशी शहर के लिहाज से तो ठीक हैं, लेकिन इस सीट पर ग्रामीण क्षेत्र के मतदाताओं का रुख हार-जीत तय करता है।
सीतापुर : जवान टोप्पो ने बढ़ाई चार बार के विधायक और मंत्री भगत की मुसीबत
केंद्रीय सशस्त्र बल से वीआरएस लेकर सियासत में आए 32 साल के रामकुमार टोप्पो ने लगातार चार बार के विधायक और मंत्री अमरजीत भगत की जमीन हिला दी है। वीरता पुरस्कार से सम्मानित टोप्पो की युवाओं में जबर्दस्त लोकप्रियता से भगत सशंकित हैं। मसीही समाज भी भगत से बिफरा हुआ है। वजह यह कि संघ और भाजपा के धर्मांतरण विरोधी अभियान के खिलाफ भगत मसीही समाज के पक्ष में खुलकर नहीं आए। मसीही समाज ने स्वतंत्र उम्मीदवार भी उतार दिया है। इलाके से ताल्लुक रखने वाले गोविंद साहू के अनुसार, लगातार चार कार्यकाल के बाद भी अमरजीत भगत ने क्षेत्र के विकास पर ध्यान नहीं दिया। टोप्पो युवा हैं और आधारभूत सुविधाओं के लिए तरसते मतदाताओं में उन्होंने उम्मीद जगाई है।