इंदौर
मास में शुक्ल पक्ष की षष्ठी तिथि को छठ पूजा का पर्व मनाया जाता है! जो इस बार 20 नवंबर को है। छठ पूजा का चार दिवसीय व्रत संतान की खुशहाली और अच्छे जीवन की कामना के लिए किया जाता है। यह अनुपम व्रत सूर्योपासना का है। इस दौरान सूर्यदव की पूजा की जाती है।
सूर्योपासना का यह अनुपम पर्व है। यह व्रत केवल महिला ही नहीं बल्कि पुरुष द्वारा भी किया जाता है। आइए जानते हैं छठ पर्व का इतिहास और उसका महत्व। दिपावली के छः दिन बाद , विश्वस्तरीय एक मात्र डुबते से उगते सूर्य आराधना पूजा की तपस्या कि अनूठी मिसाल भारतीय पूर्वांचल का महापर्व छठ पूजा, इस पूजा की बानगी देखिए ना कोई मंत्र तंत्र जाति पात से उंचा सब जाति के अनुयाई एक संग एक घाट पर एक साथ लगभग एक जैसे कपड़े पुजा सामग्री एक जैसी परंपरा के साथ, कोई पंडित पुजारी के बिना, सबका साथ सबके साथ की परम्पराओं द्वारा मनाया जाने वाला एक महापर्व,पूजा की महत्ता ऐसी कि,हरेक पूर्वांचल बिहार एवं पूर्व उत्तर प्रदेश वासी इसेअपने मात्रभूमि में ही
माता-पिता परिजनों के साथ ही मनाने की हार्दिक कामना करता है,प्रतिफल स्वरूप, ट्रेन, बस, हवाई अड्डे पर दिपावली पश्चात बहुतायत भीड़ भाड़ ओर यात्री दबाव के कारण, साधना सम्पन्न व्यक्ति निजी वाहन से भी इस पर्व को मनाने के लिए मातृभूमि को प्रस्थान करते है,इस पूजा को महापर्व के तौर पर मनाया जाता है, पूजा की विशेषता बिल्कुल अनूठी है, इसमें कोई विशेष मंत्रोच्चार या पुस्तक विशेष, पंडित पत्री की आवश्यकता बिल्कुल नहीं है, पूर्वांचल में अपने अपने क्षेत्रीय कुछ मामूली-सी बदलाव के साथ नदियों, तालाबों, नहरों या स्थानीय स्तर पर कुंड खोदकर पानी में खड़े होकर गिले वस्त्रों को पहने हुए डुबते उगते सूर्य आराधना को चार दिन भुखे प्यासें रहकर मनाया जाता है।
छठ पूजा में प्रसाद स्वरूप इस समय उगने वाले गन्ना, गेंहू, बैंगन, सिंगाड़े, चावल को शुद्ध देसी घी में गुड़ में तैयार किया जाता है, चूंकि इस पूजा में विशेष मंत्र की आवश्यकता नहीं वैसे ही मावा बेसन के प्रसादी की आवश्यकता भी नही है, पूजा करने वाले अपनी श्रद्धा से प्रयोग करते हैं, लेकिन इसमें गेहूं गुड़ का ठेकुआ, चावल आंटे का भुसवा, का विशेष महत्व है। पूजा करने वाली स्त्री इनसे से निर्मित प्रसाद को भगवान सूर्य को अर्पित करती है, पुरुष केवल जल में खड़े होकर सूर्य डुबते उगते की आराधना करते हैं।
यात्री दबाव ओर अपरिहार्य परिस्थितियों कारणों से जो अपने मातृभूमि तक नहीं आ पाते हैं वो अपने कार्य स्थलों शहरों में भारी संख्या में विभिन्न स्थलों पर तनमन धन राजनीतिक दल सहयोग विभिन्न उपक्रम से क्षेत्रीय स्तर पर कुंड निमार्ण कर भी धूमधाम से मनाने लगे हैं।
शायद यह कहना कोई अतिशयोक्ति नहीं होगी कि, शायद ही कोई राज्यों का शहर या विदेशों में कोई देश जहां छठ महापर्व के अनुयायियों ने छठ पूजा की व्यवस्था का इंतजाम ना कर लिया हो। देखा जाता है इस पूजा में क्षेत्रीय भाषाओं में क्षेत्रीय संगीतकारों द्वारा लिखा पूजा विधि विशेषता का शब्द संयोजन की माला को गाया जाने वाला गीत ही पूजा का मंत्र का स्थान रखता है। क्षेत्रीय कलाकरों द्वारा गाया गीत के शब्द ही एक अलग अलौकिक शक्ति समरसता का माहौल बना देता है।
इस महापर्व के अंतिम पड़ाव में रात्रि जागरण में कई जगह उपवास करने वाले एवं उनके परिजनों द्वारा समाजसेवी द्वारा सहयोग से रात्रि जागरण में स्थानीय संगीतकारों द्वारा गाना गा बजाकर की परम्परा भी रहती है, इसमें क्षेत्रीय कलाकरों द्वारा अधिकतम निशुल्क सहयोग किया जाता है, ऐसे प्रोग्राम में नवोदित कलाकार भी मौका चाहते हैं जो मिलता भी है। अधिकतर देखा गया है, नवोदित कलाकार भी सूर्य आराधना का प्रताप उनकी ख्याति भी सूर्य प्रकाश की तरह चहुं ओर फैलती है।क्षेत्रीय स्तर से विश्व विख्यात हो जाते हैं