लोगों से टीकाकरण और सावधानी बरतने अपील
गरियाबंद। कोविड19 के बढ़ते संक्रमण से चिंतित होकर क्षेत्र के जनप्रतिनिधियों ने पात्रता अनुसार लोगो को टीकाकरण कराने और अपने जीवन चर्या में मास्क लगाने और 2 गज दूरी का पालन करने का आग्रह किया है । जनपद पंचायत फिंगेश्वर और छुरा के जनप्रतिनिधियों ने अपने वीडियो संदेश में लोगों से कोरोना प्रोटोकॉल का पालन करने और शासन प्रशासन के दिशा निर्देशों का पालन करने के लिए लोगों से आग्रह किया है ।
जनपद पंचायत फिंगेश्वर की अध्यक्ष श्रीमती पुष्पा साहू ने अपने अपील में कहा कि वह खुद कोरोनावायरस से संक्रमित हो गई थी लेकिन दवाई लेकर और कोरोना के प्रोटोकॉल का पालन करते हुए वे स्वस्थ हो गई हैं । उन्होंने चिंता व्यक्त करते हुए कहा कि आज अपने घर पर ही सुरक्षित रहना सबसे कारगर उपाय है ।उन्होंने 45 वर्ष से अधिक उम्र के लोगों से करबद्ध प्रार्थना कर नजदीकी स्वास्थ्य केंद्रों और टीकाकरण केंद्रों में टीका लगवाने आग्रह किया है । साथ ही कहा कि अपने परिवार को सुरक्षित रखने के लिए टीकाकरण सबसे कारगर उपाय है । इसी तरह जनपद पंचायत छुरा की अध्यक्ष श्रीमती तोकेश्वरी माझी ने कहां की कोरोना संक्रमण तेजी से फैल रहा है और सभी इस संकट से सभी जूझ रहे हैं ।उन्होंने जनपद पंचायत से लेकर ग्राम पंचायत स्तर तक के प्रतिनिधियों और लोगों को टीकाकरण करने का आग्रह किया है ।उन्होंने कहा की टीकाकरण से किसी तरह का नुकसान नहीं है इससे संक्रमण से लड़ने की क्षमता मिलती है । वही जनपद पंचायत छुरा के युवा उपाध्यक्ष गौरव मिश्रा ने अपने संदेश में कहा कि लक्षण दिखे तो टीकाकरण अवश्य कराएं अपने पास के टीकाकरण केंद्र में । टीकाकरण सुरक्षित और प्रभावशाली है । उन्होंने कहा कि टीकाकरण में सरकार का सहयोग करें । श्री मिश्रा ने कहा कि कोरोना वायरस से जंग जारी है जीत की पूरी तैयारी है। इसी तरह फिंगेश्वर जनपद सदस्य श्रीमती ललिता ने छत्तीसगढ़ी में कविता के माध्यम से लोगों को समझाने का प्रयास किया है ।उन्होंने कहा कि लक्षण दिखे तो टेस्ट अवश्य कराएं और सामान्य दिनों में 2 गज दूरी पर मास्क लगाने का नियम का पालन करें। उन्होंने कहा कि ऐसी घातक बीमारी है जिसका अंदाजा उन्हीं को है जिनके घर में यह बीमारी आई है। उन्होंने लॉक डाउन का पालन करने और जांच करवा कर कोरोना को जड़ से मिटाने का संदेश दिया है । जिला प्रशासन के अपील के बाद क्षेत्र के जनप्रतिनिधि समाजसेवी और प्रबुद्ध नागरिक गण कोविड-19 को रोकने हेतु आगे आकर मदद कर रहे हैं अभी क्षेत्र के जनप्रतिनिधियों द्वारा ऑक्सीजन सिलेंडर भी दिया गया है । इसके अलावा जागरूकता प्रयासों में भी पीछे नहीं है ।
कोरोना वैक्सीन के बारे में वो सारी बातें जो आपको जाननी चाहिए
कोरोना महामारी पर नियंत्रण के लिए दुनिया के कई देशों में टीकाकरण अभियान चल रहा है।
इससे जुड़ी सूचनाएं और सुझाव कई बार आपको पेचीदा लग सकते हैं, लेकिन कुछ बुनियादी तथ्य हैं जो आपकी यह समझने में मदद करेंगे कि एक वैक्सीन आख़िर काम कैसे करती हैं।
वैक्सीन आपके शरीर को किसी बीमारी, वायरस या संक्रमण से लड़ने के लिए तैयार करती है।
वैक्सीन में किसी जीव के कुछ कमज़ोर या निष्क्रिय अंश होते हैं जो बीमारी का कारण बनते हैं।
ये शरीर के ‘इम्यून सिस्टम’ यानी प्रतिरक्षा प्रणाली को संक्रमण (आक्रमणकारी वायरस) की पहचान करने के लिए प्रेरित करते हैं और उनके ख़िलाफ़ शरीर में एंटीबॉडी बनाते हैं जो बाहरी हमले से लड़ने में हमारे शरीर की मदद करती हैं।वैक्सीन लगने का नकारात्मक असर कम ही लोगों पर होता है, लेकिन कुछ लोगों को इसके साइड इफ़ेक्ट्स का सामना करना पड़ सकता है,हल्का बुख़ार या ख़ारिश होना, इससे सामान्य दुष्प्रभाव हैं जिससे आप बिल्कुल भी ना डरें। क्योंकि वैक्सीन लगने के कुछ वक़्त बाद ही आप उस बीमारी से लड़ने की इम्यूनिटी विकसित कर लेते हैं।अमेरिका के सेंटर ऑफ़ डिज़ीज़ कंट्रोल एंड प्रिवेंशन (सीडीसी) का कहना है कि वैक्सीन बहुत ज़्यादा शक्तिशाली होती हैं क्योंकि ये अधिकांश दवाओं के विपरीत, किसी बीमारी का इलाज नहीं करतीं, बल्कि उन्हें होने से रोकती हैं।वैक्सीन आपके शरीर को किसी बीमारी, वायरस या संक्रमण से लड़ने के लिए तैयार करती है।
क्या वैक्सीन सुरक्षित हैं?
वैक्सीन का एक प्रारंभिक रूप चीन के वैज्ञानिकों ने 10वीं शताब्दी में खोज लिया था।
लेकिन 1796 में एडवर्ड जेनर ने पाया कि चेचक के हल्के संक्रमण की एक डोज़ चेचक के गंभीर संक्रमण से सुरक्षा दे रही है।
उन्होंने इस पर और अध्ययन किया,उन्होंने अपने इस सिद्धांत का परीक्षण भी किया और उनके निष्कर्षों को दो साल बाद प्रकाशित किया गया।
तभी ‘वैक्सीन’ शब्द की उत्पत्ति हुई. वैक्सीन को लैटिन भाषा के ‘Vacca’ से गढ़ा गया जिसका अर्थ गाय होता है।वैक्सीन को आधुनिक दुनिया की सबसे बड़ी चिकित्सकीय उपलब्धियों में से एक माना जाता है,विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार, वैक्सीन की वजह से हर साल क़रीब बीस से तीस लाख लोगों की जान बच पाती है।सीडीसी का कहना है कि बाज़ार में लाये जाने से पहले वैक्सीन की गंभीरता से जाँच की जाती है,पहले प्रयोगशालाओं में और फिर जानवरों पर इनका परीक्षण किया जाता है,उसके बाद ही मनुष्यों पर वैक्सीन का ट्रायल होता है।अधिकांश देशों में स्थानीय दवा नियामकों से अनुमति मिलने के बाद ही लोगों को वैक्सीन लगाई जाती हैं।
टीकाकरण में कुछ जोखिम ज़रूर हैं, लेकिन सभी दवाओं की ही तरह, इसके फ़ायदों के सामने वो कुछ भी नहीं।उदाहरण के लिए, बचपन की कुछ बीमारियाँ जो एक पीढ़ी पहले तक बहुत सामान्य थीं, वैक्सीन के कारण तेज़ी से लुप्त हो गई हैं।
चेचक जिसने लाखों लोगों की जान ली, वो अब पूरी तरह ख़त्म हो गयी है।लेकिन सफ़लता प्राप्त करने में अक्सर दशकों लग जाते हैं।वैश्विक टीकाकरण अभियान शुरू होने के लगभग 30 साल बाद अफ़्रीका को अकेला पोलियो मुक्त देश घोषित किया गया. यह बहुत लंबा समय है।विशेषज्ञों ने चेतावनी दी है कि कोविड-19 के ख़िलाफ़ पूरी दुनिया में पर्याप्त टीकाकरण करने में महीनों या संभवतः वर्षों का समय लग सकता है, जिसके बाद ही हम सामान्य स्थिति में लौट सकेंगे।
चेचक जिसने लाखों लोगों की जान ली, वो वैक्सीन की मदद से पूरी तरह ख़त्म हो गयी है।
वैक्सीन कैसे बनाई जाती हैं?
जब एक नया रोगजनक (पैथोजन) जैसे कि एक जीवाणु, विषाणु, परजीवी या फ़ंगस शरीर में प्रवेश करता है तो शरीर का एक उप-भाग जिसे एंटीजन कहा जाता है, वो उससे लड़ने के लिए एंटीबॉडी का उत्पादन शुरू कर देता है।एक वैक्सीन में किसी जीव के कुछ कमज़ोर या निष्क्रिय अंश होते हैं जो बीमारी का कारण बनते हैं।
ये शरीर के ‘इम्यून सिस्टम’ यानी प्रतिरक्षा प्रणाली को संक्रमण (आक्रमणकारी वायरस) की पहचान करने के लिए प्रेरित करते हैं और उनके ख़िलाफ़ शरीर में एंटीबॉडी बनाते हैं जो बाहरी हमले से लड़ने में हमारे शरीर की मदद करती हैं।पारंपरिक टीके शरीर के बाहरी हमले से लड़ने की क्षमता को विकसित कर देते हैं।
लेकिन टीके विकसित करने के लिए अब नये तरीक़े भी इस्तेमाल किये जा रहे हैं,कोरोना की कुछ वैक्सीन बनाने में भी इन नये तरीक़ों को आज़माया गया है।
कोविड वैक्सीन की तुलना
फ़ाइज़र-बायोएनटेक और मॉडर्ना की कोविड वैक्सीन, दोनों ‘मैसेंजर आरएनए वैक्सीन’ हैं जिन्हें तैयार करने में वायरस के आनुवांशिक कोड के एक हिस्से का उपयोग किया जाता है।
ये वैक्सीन एंटीजन के कमज़ोर या निष्क्रिय हिस्से का उपयोग करने की बजाय, शरीर के सेल्स को सिखाते हैं कि वायरस की सतह पर पाया जाने वाला ‘स्पाइक प्रोटीन’ कैसे बनायें जिसकी वजह से कोविड-19 होता है।
ऑक्सफ़ोर्ड और एस्ट्राज़ेनेका की वैक्सीन भी अलग है,वैज्ञानिकों ने इसे तैयार करने के लिए चिंपांज़ी को संक्रमित करने वाले एक वायरस में कुछ बदलाव किये हैं और कोविड-19 के आनुवंशिक-कोड का एक टुकड़ा भी इसमें जोड़ दिया है।
इन तीनों ही वैक्सीन को अमेरिका और ब्रिटेन समेत कुछ देशों में आपातकालीन इस्तेमाल की मंज़ूरी दी जा चुकी है।
क्या कोविड की और वैक्सीन भी हैं?
चीन की दवा कंपनी सिनोवैक ने ‘कोरोना-वैक’ नामक टीका बनाया है,कंपनी ने इस टीके को बनाने में पारंपरिक तरीक़े का इस्तेमाल किया है, कंपनी के अनुसार, इस टीके को बनाने के लिए वायरस के निष्क्रिय अंशों का इस्तेमाल किया गयाहालांकि, यह कितना प्रभावी है, इसे लेकर काफ़ी सवाल उठे हैं. तुर्की, इंडोनेशिया और ब्राज़ील में इस वैक्सीन का ट्रायल किया गया था,इन देशों के वैज्ञानिकों ने अंतिम चरण के ट्रायल के बाद कहा कि यह वैक्सीन 50.4 प्रतिशत ही प्रभावशाली है।भारत में दो टीके तैयार किए गए हैं,एक का नाम है कोविशील्ड जिसे एस्ट्राज़ेनेका और ऑक्सफ़ोर्ड यूनिवर्सिटी के वैज्ञानिकों ने तैयार किया और सीरम इंस्टीट्यूट ऑफ़ इंडिया ने इसका उत्पादन किया,और दूसरा टीका है भारतीय कंपनी भारत बायोटेक द्वारा बनाया गया कोवैक्सीन हैं,रूस ने अपनी ही कोरोना वैक्सीन तैयार की है जिसका नाम है ‘स्पूतनिक-5’ और इसे वायरस के वर्ज़न में थोड़ बदलाव लाकर तैयार किया गया। महामारी फैलने के बाद ‘हर्ड इम्यूनिटी’ को हासिल करना सामान्य जीवन की ओर लौटने का सबसे तेज़ तरीक़ा माना जाता है
क्या कोविड वैक्सीन लेनी चाहिए?
कहीं भी कोविड वैक्सीन लगवाना अनिवार्य नहीं किया गया है। लेकिन ज़्यादातर लोगों को यह सलाह दी जाती है कि वो वैक्सीन लगवायें,हालांकि, स्वास्थ्य संबंधी परेशानियों से जूझ रहे लोगों के मामले में यहाँ अपवाद है।
सीडीसी का कहना है कि वैक्सीन ना सिर्फ़ कोविड-19 से सुरक्षा देती है, बल्कि दूसरों को भी सुरक्षित करती है,इसके अलावा सीडीसी टीकाकरण को महामारी से बाहर निकलने का सबसे महत्वपूर्ण ज़रिया भी बताती है।
विश्व स्वास्थ्य संगठन का अनुमान है कि संक्रमण को रोकने के लिए कम से कम 65-70 प्रतिशत लोगों को वैक्सीन लगानी होगी, जिसका मतलब है कि ज़्यादा से ज़्यादा लोगों को टीका लगवाने के लिए प्रेरित करना होगा।
बहुत से लोग हैं जिन्हें कोविड वैक्सीन तैयार होने की रफ़्तार को लेकर कई तरह की चिंताएं हैं।
यह सच है कि वैज्ञानिक एक वैक्सीन विकसित करने में कई साल लगा देते हैं, मगर कोरोना महामारी का समाधान ढूंढने के लिए रफ़्तार को काफ़ी बढ़ाया गया,इसीलिए विश्व स्वास्थ्य संगठन वैज्ञानिकों, व्यापारिक और स्वास्थ्य संगठनों के साथ मिलकर काम कर रहा है।
संक्षेप में कहें तो अरबों लोगों के टीकाकरण से कोविड-19 को फैलने से रोका जा सकेगा और दुनिया हर्ड इम्यूनिटी की ओर बढ़ेगी,विशेषज्ञों का कहना है कि हर्ड इम्यूनिटी के ज़रिये ही दुनिया सामान्य जीवन में दोबारा लौट पायेगी।कोविशील्ड की दोनों खुराक के बीच का अंतराल बढ़ाकर 6-8 हफ्ते किया
भारत की केंद्र सरकार ने कोविशील्ड वैक्सीन की दूसरी खुराक लेने के समय को बदल दिया है।दोनों खुराक के बीच समय अंतराल 4-6 सप्ताह की जगह 4-8 सप्ताह तक कर दिया गया है।22 मार्च को केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय ने कहा था कि सामने आ रहे वैज्ञानिक साक्ष्यों के मद्देनज़र कोविशील्ड की दो खुराक के बीच के अंतराल को टीकाकरण पर राष्ट्रीय तकनीकी सलाहकार समूह (एनटीएजीआई) और उसके बाद एनईजीवीएसी की ओर से उसकी 20वीं बैठक में अपडेट किया गया है।सभी राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों को भेजे पत्र में केंद्र ने इसे 4-6 सप्ताह के बीच देने के बजाय 4-8 सप्ताह के बीच देने के लिए कहा।
भारत में मिला ‘डबल म्यूटेंट’ वेरिएंट क्या है?
भारत में कोरोना वायरस के एक नए ‘डबल म्यूटेंट’ वेरिएंट का पता चला है,केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय ने बताया है कि देश के 18 राज्यों में कई ‘वेरिएंट ऑफ़ कंसर्न्स’ (VOCs) पाए गए हैं। इसका मतलब कि देश के कई हिस्सों में कोरोना वायरस के अलग-अलग प्रकार पाए गए हैं जो स्वास्थ्य पर हानिकारक असर डाल सकते हैं।इनमें ब्रिटेन, दक्षिण अफ़्रीका, ब्राज़ील के साथ-साथ भारत में पाया गया नया ‘डबल म्यूटेंट’ वेरिएंट भी शामिल है. वायरस का यह म्यूटेशन क़रीब 15 से 20 फ़ीसदी नमूनों में पाया गया है जबकि यह चिंता पैदा करने वाली बात है कि पहले की किस्मों से मेल नहीं खाता हालांकि, स्वास्थ्य मंत्रालय ने साफ़ कर दिया है कि इस डबल म्यूटेंट वेरिएंट के कारण देश में संक्रमण के मामलों में उछाल नहीं दिखता है,मंत्रालय ने बताया है कि इस स्थिति को समझने के लिए जीनोमिक सीक्वेंसिंग और एपिडेमियोलॉजिकल (महामारी विज्ञान) स्टडीज़ जारी है।
दरअसल डबल म्यूटेंट वेरिएंट वायरस का वो रूप है, जिसके जीनोम में दो बार बदलाव हो चुका है. हालांकि वायरस के जीनोमिक वेरिएंट में बदलाव होना आम बात है।
कोविड-19 वैक्सीन कितनी सुरक्षित है?
भारत में कोविड-19 से बचाव के लिए टीकाकरण अभियान जारी है,भारत में लोगों को दो तरह की वैक्सीन दी जा रही है,एक का नाम है कोविशील्ड जिसे एस्ट्राज़ेनेका और ऑक्सफ़ोर्ड यूनिवर्सिटी के वैज्ञानिकों ने तैयार किया और सीरम इंस्टीट्यूट ऑफ़ इंडिया ने इसका उत्पादन किया. और दूसरा टीका है भारतीय कंपनी भारत बायोटेक द्वारा बनाया गया कोवैक्सीन ब्रिटेन समेत कई अन्य देशों में भी लोगों को वैक्सीन लगाई जा रही है। ब्रिटेन में ऑक्सफ़र्ड-एस्ट्राज़ेनेका और फाइज़र-बायोएनटेक की वैक्सीन लगाई जा रही है।
जहां जो भी वैक्सीन लगाई जा रही है, वहां के नियामकों ने उसे सुरक्षित बताया है,हालांकि कुछ लोगों में वैक्सीन लेने के बाद मामूली रीएक्शन देखे गए हैं।
कोविड वैक्सीन क्या सुरक्षित है?कैसे पता चलता है कि वैक्सीन सुरक्षित है?
वैक्सीन के लिए पहले लैब में सेफ्टी ट्रायल शुरू किए जाते हैं, जिसके तहत कोशिकाओं और जानवरों पर परीक्षण और टेस्ट किए जाते हैं. इसके बाद इंसानों पर अध्ययन होते हैं।
सिद्धांत ये है कि छोटे स्तर पर शुरू करो और परीक्षण के अगले स्तर पर तभी जाओ जब सुरक्षा को लेकर कोई चिंताएं ना रहें।
ट्रायल की क्या भूमिका होती है?
लैब का सेफ्टी डेटा ठीक रहता है तो वैज्ञानिक वैक्सीन के असर का पता लगाने के लिए आगे बढ़ सकते हैं।इसका मतलब फिर वॉलंटियर के बड़े समूह पर परीक्षण किए जाते हैं. जैसे फाइज़र-बायोएनटेक के मामले में क़रीब 40 हज़ार लोगों पर परीक्षण किए गए,आधों को वैक्सीन दी गई और आधों को एक प्लेसबो जैब,रिसर्चरों और भाग लेने वाले लोगों को नतीजे आने तक नहीं बताया गया था कि कौन-सा समूह कौन है, ताकि पूर्वाग्रह से बचा जा सके।
पूरे काम और निष्कर्ष को स्वतंत्र रूप से जांचा गया और सत्यापित किया गया।कोविड वैक्सीन के परीक्षण बहुत तेज़ गति से किए गए, लेकिन पूरी प्रक्रिया का पालन किया गया।
वहीं ऑक्सफ़ोर्ड-एस्ट्राज़ेनेका कोविड वैक्सीन का ट्रायल उस वक़्त जांच के लिए कुछ देर के लिए रोक दिया गया था जब एक प्रतिभागी की मौत हो गई थी. ये प्रतिभागी हज़ारों प्रतिभागियों में से एक था. बताया गया कि मौत की वजह वैक्सीन नहीं थी, जिसके बाद ट्रायल फिर शुरू कर दिया गया थाहालांकि भारत की स्वदेशी कोवैक्सीन के डेटा की कमी को लेकर शुरू में चिंताएं जताई गई थीं, लेकिन मार्च में इस वैक्सीन को बनाने वाली कंपनी भारत बायोटेक ने दावा किया था कि तीसरे चरण के ट्रायल में कोवैक्सीन की प्रभावकारिता 81% पाई गई हैं।
आईसीएमआर के साथ मिलकर कोवैक्सीन को विकसित करने वाली भारत बायोटेक कंपनी के मुताबिक़, तीसरे चरण के अध्ययन में 18-98 साल की बीच की उम्र के 25,800 लोगों ने हिस्सा लिया. इनमें 60 साल से ज़्यादा उम्र के 2,433 और गंभीर बीमारियों से जूझ रहे 4,500 लोग थे।
कोविड वैक्सीन क्या सुरक्षित है?क्या वैक्सीन से साइड-इफ़ेक्ट हो सकता है?
वैक्सीन आपको कोई बीमारी नहीं देती,बल्कि आपके शरीर के इम्यून सिस्टम को उस संक्रमण की पहचान करना और उससे लड़ना सिखाती है, जिसके ख़िलाफ़ सुरक्षा देने के लिए उस वैक्सीन को तैयार किया गया है।
वैक्सीन के बाद कुछ लोगों को हल्के लक्षण झेलने पड़ सकते हैं। ये कोई बीमारी नहीं होती, बल्कि वैक्सीन के प्रति शरीर की प्रतिक्रिया होती है।
10 में से एक व्यक्ति को जो सामान्य रिएक्शन हो सकता है और आम तौर पर कुछ दिन में ठीक हो जाता है, जैसे – बांह में दर्द होना, सरदर्द या बुख़ार होना, ठंड लगना, थकान होना, बीमार और कमज़ोर महसूस करना, सिर चकराना, मांसपेशियों में दर्द महसूस होना।
कोविड वैक्सीन क्या सुरक्षित है?
फाइज़र-बायोएनटेक की वैक्सीन (और मॉडर्ना) इम्यून रिस्पॉन्स के लिए कुछ आनुवंशिक कोड का इस्तेमाल करती है और इसे mRNA वैक्सीन कहा जाता है।
ये मानव कोशिकाओं में बदलाव नहीं करता है, बल्कि शरीर को कोविड के ख़िलाफ़ इम्यूनिटी बनाने का निर्देश देता है।
ऑक्सफ़र्ड-एस्ट्राज़ेनेका वैक्सीन में एक ऐसे वायरस का उपयोग किया जाता है, जिससे कोई नुक़सान नहीं होता और जो कोविड वायरस की तरह ही दिखता है।वैक्सीन में कभी-कभी एल्युमिनियम जैसे अन्य तत्व होते हैं, जो वैक्सीन को स्थिर या अधिक प्रभावी बनाते हैं।
वैक्सीन एलर्जी का क्या?
बहुत कम मामलों में एलर्जिक रिएक्शन होते हैं,जो वैक्सीन इस्तेमाल के लिए मंज़ूर हो जाती है, उसे स्टोर करने में इस्तेमाल होने वाली सामग्री के बारे में भी जानकारी उपलब्ध होती है।
एनएचआरए ने बताया है कि जिन लोगों को फाइज़र-बायोएनटेक वैक्सीन दी गई उनमें से कुछ कम लोगों में गंभीर एलर्जिक रिएक्शन देखने को मिले हैं,उनका कहना है कि जिन लोगों को इस वैक्सीन में मौजूद किसी सामग्री से एलर्जिक रिएक्शन की हिस्ट्री रही है, उन्हें एहतियात के तौर पर अभी ये वैक्सीन नहीं लेनी चाहिए।
ये सावधानी भी रखनी चाहिए कि सोशल मीडिया के ज़रिए एंटी-वैक्सीन कहानियां फैलाई जा रही हैं. ये पोस्ट किसी वैज्ञानिक सलाह पर आधारित नहीं है (या इनमें कई तथ्य ग़लत हैं).
अगर पहले से कोविड हो चुका हो तो?
अगर किसी को पहले कोरोना संक्रमण हो चुका है तो भी उन्हें वैक्सीन दी जा सकती है,ऐसा इसलिए क्योंकि प्राकृतिक इम्यूनिटी ज़्यादा वक़्त तक नहीं रह सकती और वैक्सीन से ज़्यादा सुरक्षा मिल सकती है।
कहा जाता है कि जिन लोगों को “लॉन्ग” कोविड रहा है उन्हें भी वैक्सीन देना कोई चिंता की बात नहीं है,लेकिन जो लोग अभी वायरस से संक्रमित है, उन्हें ठीक होने के बाद ही वैक्सीन दी जानी चाहिए।
क्या इनमें पशु उत्पाद या एल्कोहल है?
कुछ वैक्सीन, जैसे शिगल्स (एक तरह का इन्फेक्शन) की वैक्सीन और बच्चों के नेज़ल फ्लू की वैक्सीन में सूअर की चर्बी होती है।फाइज़र, मॉडर्ना और एस्ट्राज़ेनेका की कोविड वैक्सीन में सूअर की चर्बी या कोई और पशु उत्पाद नहीं होता है,ब्रिटिश इस्लामिक मेडिकल एसोसिएशन का कहना है कि इसमें नगण्य मात्रा में एल्कोहल है – जो ब्रेड में इस्तेमाल होने वाली मात्रा से ज़्यादा नहीं है।