नई दिल्ली
एक रिपोर्ट में यह खुलासा हुआ है कि साल 2021 से सितंबर 2023 के बीच भारत के खिलाफ विदेशी सरकार-प्रायोजित साइबर हमलों में 278% की वृद्धि हुई है, जिसमें सूचना प्रौद्योगिकी (आईटी) और बिजनेस प्रोसेस आउटसोर्सिंग (बीपीओ) फर्मों सहित सेवा कंपनियों में हमलों की हिस्सेदारी सबसे अधिक देखी गई है.
इस अवधि के दौरान सरकारी एजेंसियों पर लक्षित साइबर हमलों में 460% की वृद्धि हुई, जबकि स्टार्टअप और छोटे और मध्यम उद्यमों (एसएमई) पर 508% की भारी वृद्धि देखी गई.
रिपोर्ट के अनुसार, सिंगापुर स्थित साइबर सुरक्षा फर्म साइफर्मा (Cyfirma) की ‘2023 इंडिया थ्रेट लैंडस्केप रिपोर्ट’ के अनुसार, भारत विश्व स्तर पर सबसे अधिक लक्षित देश है, जो सभी साइबर हमलों में से 13.7% का सामना करता है.
9.6% हमलों के साथ अमेरिका दूसरा सबसे अधिक लक्षित देश है. इसके बाद इंडोनेशिया और चीन ने क्रमश: 9.3% और 4.5% हमलों का सामना किया.
साइफर्मा के संस्थापक और मुख्य कार्यकारी कुमार रितेश ने इकोनॉमिक टाइम्स को बताया कि वैश्विक औसत की तुलना में भारत में विदेशी सरकार-प्रायोजित साइबर हमलों का अनुपात भी अधिक है.
उन्होंने कहा कि वैश्विक स्तर पर पिछले तीन वर्षों में लगभग 68 प्रतिशत साइबर हमले सरकार प्रायोजित थे. उन्होंने कहा, ‘अगर आप भारत की संख्या को देखें, तो यह थोड़ा अधिक 72% है.’
साइफर्मा ने पाया कि आईटी और बीपीओ सहित सेवा कंपनियां मार्च 2021 और सितंबर 2023 के बीच 14.3% साइबर हमलों का शिकार हुईं. इसके बाद विनिर्माण क्षेत्र पर 11.6% और स्वास्थ्य देखभाल तथा शिक्षा में लगभग 10-10% साइबर हमला देखा गया.
ऑनलाइन प्लेटफॉर्म सहित खुदरा क्षेत्र में 9.8%, जबकि सरकारी एजेंसियों पर 9.6% हमले हुए. बैंकिंग और वित्तीय सेवा संस्थानों, ऑटोमोबाइल और एयरलाइंस पर क्रमश: 9.5%, 8.3% और 6.1% हमले देखे गए.
उन्होंने बताया कि 2015-16 में भारत पर 58-59% साइबर हमले पाकिस्तान या मध्य पूर्व के ऑपरेटरों से थे. आज केवल 6.4% हमले पाकिस्तान या उनके सहयोगियों से हैं, जबकि 79% हमले चीन से हैं.
उन्होंने कहा कि जिस तरह के परिष्कृत साइबर अपराधियों के खिलाफ भारत मुकाबला कर रहा है, उसे देखते हुए उसे साइबर सुरक्षा नीतियों के बेहतर कार्यान्वयन और विशेष रूप से एसएमई और स्टार्टअप के बीच अधिक जागरूकता की आवश्यकता है.
भारत की साइबर सुरक्षा कमजोर
जहां डिजिटलीकरण ने साइबर सुरक्षा की आवश्यकता को तेज कर दिया है, वहीं भारत के साइबर सुरक्षा नियम कमजोर और अपर्याप्त हैं.
पिछले साल 30 नवंबर को इंडियन काउंसिल ऑफ मेडिकल रिसर्च (आईसीएमआर) की वेबसाइट को 24 घंटे में हैकिंग के लगभग 6,000 प्रयासों का सामना करना पड़ा था.
यह अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स) के पांच सर्वरों को रैनसमवेयर द्वारा हैक किए जाने के एक सप्ताह बाद हुआ था. अनुमानित 1.3 टेराबाइट डेटा एन्क्रिप्ट किया गया था. हैकर्स ने एम्स के लिए अपने ही डेटा तक पहुंच को असंभव बना दिया था.
31 अक्टूबर 2023 को बड़े पैमाने पर हुए एक डेटा उल्लंघन में आईसीएमआर के पास मौजूद 81.5 करोड़ से अधिक भारतीयों की जानकारी डार्क वेब पर बेच दी गई थी.
इसके अलावा मैसाचुसेट्स इंस्टिट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी (एमआईटी) टेक्नोलॉजी रिव्यू साइबर डिफेंस इंडेक्स (सीडीआई) 2022/23 ने भारत को 20 में से 17वें स्थान पर रखा है.
एक अन्य रिपोर्ट में कहा गया है कि एमआईटी की ‘सीडीआई’ साइबर सुरक्षा खतरों के खिलाफ तैयारी, प्रतिक्रिया और पुनर्प्राप्ति पर दुनिया की 20 सबसे बड़ी और सबसे डिजिटल अर्थव्यवस्थाओं की ‘अपनी तरह की पहली’ वार्षिक तुलनात्मक रैंकिंग है.
इकोनॉमिक टाइम्स ने रिपोर्ट के हवाले से कहा है, ‘भारत डिजिटल रूप से आगे बढ़ने वाली सरकार और दुनिया के सबसे बड़े आईटी-सक्षम सेवा क्षेत्रों के बावजूद संघर्ष कर रहा है. साइबर हमलों और साइबर सुरक्षा कानूनों तथा एक समर्पित मंत्रालय की मांग के बावजूद भारत ने इससे बाहर निकलने का विकल्प चुना है.’
साइबर हमलों की बढ़ती संख्या ने साइबर सुरक्षा कानून और एक समर्पित मंत्रालय की स्थापना की मांग की है. विशेषज्ञों ने साइबर सुरक्षा उद्योग में रोजगार सृजन की आवश्यकता भी बताई है.
चीन के बाद सक्रिय इंटरनेट उपयोगकर्ताओं की दूसरी सबसे बड़ी संख्या होने के बावजूद भारत वैश्विक साइबर सुरक्षा नौकरियों में केवल 6 प्रतिशत का प्रतिनिधित्व करता है.