नई दिल्ली
अमेरिकी रेटिंग एजेंसी एजेंसी Fitch का कहना है कि भारत की आर्थिक वृद्धि दर टॉप-10 उभरती अर्थव्यवस्थाओं में सबसे ज्यादा रहने वाली है। यही नहीं Fitch ने सोमवार को भारत के मिड टर्म ग्रोथ अनुमान को 0.7% बढ़ाकर 6.2% कर दिया। इससे पहले ग्लोबल एजेंसी का अनुमान 5.5% का था। फिच की मानें तो हालिया महीनों में भारत में रोजगार दर में सुधार हुआ है। वर्किंग एज पॉपुलेशन के फोरकास्ट में भी सुधार आया है। फिच के अनुसार, भारत की श्रम उत्पादकता का अनुमान भी अन्य देशों की तुलना में बेहतर है।
वहीं, इसने 10 उभरते देशों के ग्रोथ अनुमान को पहले के 4.3% से घटाकर 4% कर दिया है। इसके लिए फिच ने चीन की अर्थव्यवस्था में गिरावट को जिम्मेदार ठहराया है। ग्लोबल रेटिंग एजेंसी ने अपनी रिपोर्ट में कहा है कि ‘यह कमी मुख्य रूप से चीन की सप्लाई-साइड ग्रोथ पोटेंशियल के अनुमान में 0.7% अंक की बड़ी कमी के कारण आई है।' चीन के मिड टर्म ग्रोथ अनुमान को 5.3 फीसदी से घटाकर 4.6 फीसदी कर दिया गया है।
क्या कहा रिपोर्ट में
‘हमने भारत और मैक्सिको को बड़े पैमाने पर अपग्रेड किया है। भारत के ग्रोथ अनुमान को 5.5% से बढाकर 6.2% जबकि मेक्सिको के ग्रोथ अनुमान को 1.4% से बढाकर 2% किया गया है। फिच ने कहा है कि 2023-24 के लिए भारत की विकास दर 6.3 % रहने की उम्मीद है।
ये चिंता भी है
फिच ने मध्यम अवधि 2023 से 2027 को माना है। रेटिंग एजेंसी के अनुसार, भागीदारी दर में नकारात्मक वृद्धि के अनुमान को देखते हुए भारत की अनुमानित श्रम आपूर्ति वृद्धि 2019 की तुलना में कम है। हालांकि, भागीदारी दर अपनी कोविड-19 महामारी की नरमी से उबर गई है, लेकिन यह 2000 के दशक की शुरुआत में दर्ज स्तर से काफी नीचे बनी हुई है। महिलाओं के बीच रोजगार दर कम है।
चीन में एफडीआई गेज माइनस में गया
दुनिया की दूसरी सबसे बड़ी इकॉनमी वाले देश चीन के आर्थिक हालात लगातार बदतर होते जा रहे हैं। लाख कोशिशों के बाद भी चीन की सरकार विदेशी कंपनियों और निवेशकों का भरोसा जीतने में नाकाम रही है। विदेशी निवेशक तेजी से चीन से पैसा निकालने में लगे हैं। यही वजह है कि 25 साल में पहली बार देश में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश यानी एफडीआई गेज माइनस में चला गया है। यह एफडीआई को मापने का पैमाना है जो 1998 के बाद पहली बार माइनस में गयाहै। सरकारी आंकड़ों के मुताबिक तीसरी तिमाही में डायरेक्ट इनवेस्टमेंट लायबिलिटीज माइनस 11.8 अरब डॉलर रही जो पिछले साल समान तिमाही में 14.1 अरब डॉलर रही थी। इसका मतलब है कि विदेशी कंपनियां चीन में निवेश करने के बजाय अपना पैसा निकालने में लगी हैं।
स्टेट एडमिनिस्ट्रेशन ऑफ फॉरेन एक्सचेंज (SAFE) के आंकड़ों में यह बात सामने आई है। डायरेक्ट इनवेस्टमेंट लायबिलिटीज में विदेशी कंपनियों के ऐसे प्रॉफिट को भी शामिल किया जाता है जिसे अब तक विदेश नहीं भेजा गया है या शेयरहोल्डर्स के बीच नहीं बांटा गया है। साथ ही इसमें फाइनेंशियल इंस्टीट्यूशंस में विदेशी निवेश को भी शामिल किया जाता है। चीन में एफडीआई की थाह बताने वाले पैमाने में भी साल के पहले नौ महीने में 8.4 परसेंट गिरावट आई है। पहले आठ महीने में यह 5.1 परसेंट थी।
चीन और अमेरिका में तनाव
चीन की इकॉनमी को कई मोर्चों पर चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है। साथ ही चीन और अमेरिका के बीच लंबे समय से तनातनी चल रही है। इससे विदेशी निवेशक और कंपनियां बुरी तरह घबराई हुई हैं और वहां से अपना पैसा निकाल रही हैं। दुनिया की दूसरी सबसे बड़ी एसेट मैनेजमेंट कंपनी Vanguard ने भी चीन से बोरिया बिस्तर समेट लिया है। कंपनी ने कहा है कि वह दिसंबर तक शंघाई में अपना दफ्तर बंद कर देगी। कंपनी ने चीन में अपने जॉइंट वेंचर की हिस्सेदारी स्थानीय कंपनी को बेच दी है।
इकॉनमी में जान फूंकने के सरकार के सारे प्रयास नाकाम हुए हैं। पिछले महीने सरकार ने 137 अरब डॉलर का सॉवरेन बॉन्ड मंजूर किया था। इसका इस्तेमाल मुख्य रूप से इन्फ्रा प्रोजेक्ट्स को फंड करने के लिए किया जाएगा। सितंबर में सरकार ने देश के दो सबसे बड़े शहरों बीजिंग और शंघाई में कैपिटल कंट्रोल में भी ढील देने की घोषणा की थी ताकि विदेशी निवेशक आसानी से देश से अपना पैसा ला सकें और ले जा सकें। चीन के प्रमुख बैंक ने भी विदेशी निवेशकों की चिंताओं को दूर करने के लिए कई टॉप वेस्टर्न कंपनियों से बात की है। लेकिन विदेशी कंपनियां इस बात से घबराई हुई हैं कि चीन की सरकार ने उनकी निगरानी बढ़ा दी है।