राष्ट्रपति के पास फैसले के लिए भेजे गए दस्तावेज देखकर सुप्रीम कोर्ट ने जताई संतुष्टि
जेल में हुए दुर्व्यवहार का आरोप दया याचिका रद्द करने की समीक्षा करने का आधार नहीं
नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने निर्भया गैंगरेप के गुनाहगार मुकेश की दया याचिका खारिज करने के खिलाफ दायर याचिका को खारिज कर दिया है। जस्टिस आर भानुमति की अध्यक्षता वाली बेंच ने ये फैसला सुनाया। कोर्ट ने कहा कि दिल्ली सरकार ने सभी फैसलों को राष्ट्रपति के पास फैसले के लिए भेजा था। कोर्ट ने कहा कि वे सभी दस्तावेज हमने खुद देखे। याचिकाकर्ता के इस आरोप में कोई दम नहीं है कि राष्ट्रपति के पास सभी तथ्य नहीं भेजे गए थे। कोर्ट ने कहा कि दोषी याचिकाकर्ता के साथ जेल में हुए दुर्व्यवहार के आरोप को दया याचिका रद्द करने की समीक्षा करने का आधार नहीं हो सकता है। कोर्ट ने कहा कि जल्द फैसला लेने का मतलब ये नहीं है कि दया याचिका के तथ्यों पर गौर नहीं किया गया। पिछले 28 जनवरी को कोर्ट ने फैसला सुरक्षित रख लिया था। मुकेश की वकील अंजना प्रकाश ने कहा था कि संविधान के मुताबिक जीने का अधिकार और आजादी सबसे महत्वपूर्ण है। सुप्रीम कोर्ट के फैसलों के मुताबिक राष्ट्रपति को किसी दया याचिका पर विचार करते समय आपराधिक मामले के सभी पहलुओं पर गौर करना चाहिए। यहां तक कि दया याचिका खारिज होने से पहले ही काल कोठरी यानि अकेले जेल में रख दिया गया, ये जेल मैन्युअल के खिलाफ है। अंजना प्रकाश ने कहा था कि कोर्ट सारी मेरिट पर विचार कर चुका है। हम सिर्फ दया याचिका खारिज करने में विवेक के इस्तेमाल ना करने की बात पर ही विचार कर सकते हैं।
उन्होंने कहा था कि मुकेश का जेल में यौन उत्पीड़न हुआ। जेल में मुकेश को अक्षय के साथ शारीरिक संबंध बनाने के लिए मजबूर किया गया। राम सिंह का भी यौन शोषण हुआ था। राम सिंह ने आत्महत्या नहीं की थी, उसकी हत्या की गई। उन्होंने कहा था कि 14 जनवरी को मुकेश दया याचिका दाखिल करता है। 24 घंटों में ही दया याचिका का दिल्ली सरकार ने निपटारा कर सुझाव दिया कि मुकेश की दया याचिका को खारिज किया जाना चहिये। दिल्ली सरकार ने उप-राज्यपाल को फाइल भेज दी। 16 जनवरी की शाम को रात में गृह मंत्रालय राष्ट्रपति के पास दया याचिका खारिज करने का सुझाव देता है। 17 जनवरी को राष्ट्रपति दया याचिका खारिज कर देते हैं। अंजना प्रकाश ने तिहाड़ जेल प्रशासन पर बड़ा आरोप लगाते हुए कहा था कि मुकेश को क्युरेटिव याचिका खारिज होने से पहले ही एकांतवास में रखा गया था। सेल में उसे अकेला रखा जाता था।
सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने याचिका का विरोध करते हुए कहा था कि राष्ट्रपति के पास दया याचिका दाखिल करने के बाद गृह मंत्रालय को सारे जजमेंट उनके सामने रखने होते हैं। इस केस में भी यही हुआ है। उन्होंने कहा था कि सुप्रीम कोर्ट ने खुद ही कहा है कि दया याचिका के निपटारे में देरी अमानवीय है इसे तुरंत होना चाहिए।
तुषार मेहता ने कहा था कि दया याचिका दाखिल होते ही इसकी कार्रवाई शुरु की गई। 15 जनवरी को उप-राज्यपाल ने गृह मंत्रालय को रिपोर्ट भेजी। 16 जनवरी को गृह मंत्रालय ने इसे राष्ट्रपति को भेजा। 17 जनवरी को दया याचिका खारिज कर दी गई। जो भी दस्तावेज नियमों के तहत जरूरी होते हैं वो राष्ट्रपति के सामने रखे गए थे। उन्होंने कहा था कि किसी लड़की की आंतें बाहर निकाल देनेवाले इस तरह की दलील देकर रहम की उम्मीद नहीं कर सकते हैं। उन्होंने कहा था कि राष्ट्रपति ने सभी तथ्यों को देखने के बाद फैसला लिया। अगर दोषी का जेल में शोषण हुआ भी तो तो उसके आधार पर फांसी से राहत नहीं मांग सकता है। पिछले 17 जनवरी को निर्भया के दोषियों को 1 फरवरी की सुबह छह बजे चारो दोषियों को फांसी देने का आदेश दिया था। 20 जनवरी को पवन की घटना के वक्त नाबालिग होने का दावा खारिज कर दिया था। पिछले 25 जनवरी को पटियाला हाउस कोर्ट ने निर्भया गैंगरेप और हत्या के मामले में दो दोषियों की याचिका का निपटारा करते हुए कहा था कि अब कोई निर्देश देने की जरूरत नहीं है।
दोषियों की मांग पर तिहाड़ जेल प्रशासन ने वे सभी दस्तावेज मुहैया करा दिए हैं जो मांगे गए थे। उनके मुताबिक, अब कोई दस्तावेज देना बाकी नहीं। दोनों की याचिका में कहा गया था कि तिहाड़ जेल प्रशासन ने सुप्रीम कोर्ट में क्युरेटिव पिटीशन दाखिल करने के लिए जरूरी दस्तावेज उपलब्ध नहीं कराए हैं।