रायपुर
आखिरकार नहीं माने अजीत कुकरेजा,कौन है अजीत कुकरेजा बताने की जरूरत नहीं। रायपुर उत्तर विधानसभा से टिकट के दावेदार कांग्रेस से थे। वरिष्ठ पार्षद एमआईसी मेंबर्स कांग्रेस परिवार से नाता,सिंधी बिरादरी का प्रतिनिधित्व जैसे कई कारणों को लेकर वे जिस दिन से नामांकन दाखिल किए थे चर्चा में आ गए। जिस अंदाज में वे भीड़ लेकर पहुंचे थे सबके कान खड़े हो गए थे। फिर भी चर्चा हो रही थी कि मुख्यमंत्री बघेल के कहने पर वे नाम वापस ले लेंगे लेकिन नहीं लिया।
अब यह भी चर्चा हो रही है कि क्या उनसे बात नहीं की गई या वे अपनी जिद्द पर अड़ गए। आखिर क्यों बागी हुए कुकरेजा के सवाल पर यह जानकारी आ रही है कि पहले वे महापौर की दौड़ में शामिल थे लेकिन ढेबर को बना दिया गया। इसे लेकर कई मौकों पर वे नाराजगी जाहिर करते रहे। इस बार युवाओं को टिकट देने की बात आई तो उत्तर विधानसभा से उन्होने दावा ठोका। लेकिन कांग्रेस ने फिर अपने पुराने विधायक को मैदान में उतार दिया। जातिगत बाहुल्यता को देखते हुए तब जबकि इस बिरादरी से किसी को भी न तो कांग्रेस और न ही भाजपा ने टिकट दी है माना जा रहा था कि समाज की नाराजगी दूर करने उन्हे टिकट दी जा सकती है वे लगातार दिल्ली की दौड़ लगाते रहे लेकिन नहीं मिली और कुकरेजा ने निर्दलीय चुनाव लडऩा तय कर लिया। अब पार्टी से निकाला जाना तो तय है।
बड़ा सवाल चुनाव में कितना असर डाल पायेंगे..? निश्चित रूप से कांग्रेस को ही नुकसान पहुंचायेंगे। जातिगत समीकरण के लिहाज से देखें तो इनकी एकजुटता में भीतरखाने से भाजपा के नाराज लोगों का भी समर्थन मिल सकता है। संसाधन में कोई कमी नहीं है। सामाजिक सांस्कृतिक धार्मिक समितियों का बड़ा समूह इनके साथ जुड़ा हुआ है जिनका वे लगातार सहयोग करते रहे हैं। लेकिन इन तमाम संभावनाओं के बावूजद राजनीति और चुनाव है आगे क्या कुछ हो सकता है दावे के साथ नहीं कहा जा सकता। लेकिन इतना तो तय है कि अब इस सीट पर जीत हार का समीकरण प्रभावित तो होगा।
इस सीट के साथ एक और बड़ी बात यह भी है कि भाजपा से बागी होकर चुनाव लड़ रही उत्कल समाज की सावित्री जगत भाजपा का वोट काट सकती है। वही सकल गुजराती समाज ने हिम्मत भाई पटेल को निर्दलीय उतारा है मतलब जातिगत फैक्टर यहां जमकर चलेगा और दावेदारों को अपने वोट को सहेजने में पसीना छूट जायेगा।