नई दिल्ली
भारतीय सेना चुनौतीपूर्ण समुद्री वातावरण में तेजी से प्रतिक्रिया देने के लिए लैंडिंग क्राफ्ट और तेज गश्ती नौकाओं के साथ सर क्रीक क्षेत्र में रणनीतिक क्षमताओं को बढ़ाएगी। सेना ने आठ लैंडिंग अटैक क्राफ्ट और 'मेक इन इंडिया इन डिफेंस' कार्यक्रम के तहत छह तेज गश्ती नौकाएं हासिल करने की प्रक्रिया शुरू की है। इससे भारतीय सेना को पाकिस्तान और चीन सीमाओं पर उन्नत नौकाओं के साथ तटीय अभियानों में बढ़त हासिल होगी।
भारतीय सेना ने 06 फास्ट पेट्रोल बोट और 08 लैंड क्राफ्ट की खरीद के लिए एक आरएफआई जारी किया है। सेना ने एक बयान में कहा कि लैंड क्राफ्ट को सर क्रीक क्षेत्र और ब्रह्मपुत्र नदी बेसिन में वाहन, सामग्री के परिवहन, नाव गश्ती और सीमित खोज और बचाव के लिए तैनात किया जाना है। इसी तरह सर क्रीक क्षेत्र सहित समुद्र और जल निकायों पर निगरानी, गश्त और अवरोधन के लिए तेज़ गश्ती नौकाओं को तैनात किया जाना है।
भारतीय सेना के एक अधिकारी ने बताया कि देश के विभिन्न हिस्सों में क्रीक क्षेत्रों और नदी घाटियों में खोज और बचाव अभियान चलाने के लिए सेना समुद्री या नदी तट का उपयोग किए बिना जल निकायों के अंदर और बाहर आने में सक्षम होना चाहती है। इनके खरीदने का मकसद सर क्रीक क्षेत्र, ब्रह्मपुत्र नदी बेसिन और सुंदरबन डेल्टा क्षेत्रों में अपने अभियानों को रणनीतिक बढ़त दिलाना है। भारत और पाकिस्तान की सीमा पर स्थित सर क्रीक क्षेत्र लंबे समय से भू-राजनीतिक तनाव का केंद्र बिंदु, सीमा पार घुसपैठ और तस्करी गतिविधियों का केंद्र रहा है।
पाकिस्तान की समुद्री सीमा अरब सागर से मिलती है, जहां इसके जलमार्गों के जटिल नेटवर्क की चुनौतियों का मुकाबला करने के लिए विशेष समुद्री बल की आवश्यकता होती है, ताकि चुस्त और तीव्र प्रतिक्रिया दी जा सके। सेना की लैंडिंग क्राफ्ट और तेज गश्ती नौकाओं से समुद्री परिवहन को सक्षम करने के साथ ही विभिन्न इलाकों में तेजी से तैनाती करके प्रतिक्रिया दी जा सकेगी। इसके अतिरिक्त ये क्राफ्ट सैनिकों और सामग्रियों की आवाजाही को आसान बनाएंगी, जिससे महत्वपूर्ण परिदृश्यों में समय पर सुदृढ़ीकरण और रसद सहायता सुनिश्चित की जा सकेगी।
इसके अलावा ये क्राफ्ट गश्त करने और तटीय क्षेत्रों में निगरानी और सुरक्षा बढ़ाने में भी माहिर होंगी। यह रणनीतिक खरीद सर क्रीक एरिया और ब्रह्मपुत्र नदी बेसिन जैसे महत्वपूर्ण क्षेत्रों को सुरक्षित करने में भारतीय सेना के रुख के अनुरूप है, जिससे घुसपैठ और तस्करी जैसी अवांछित गतिविधियों की संभावना कम होगी। एकीकृत नेविगेशन सूट से लैस सेना की लैंडिंग क्राफ्ट को सभी गतिशील और स्थिर संपर्कों, समुद्र तट सुविधाओं, नेविगेशनल सहायता और बंदरगाह प्रतिष्ठानों के लिए डिज़ाइन किया गया है, जो ऑपरेटरों के लिए व्यापक स्थितिजन्य जागरुकता सुनिश्चित करता है। इसमें लगा रडार स्वचालित पहचान प्रणाली, ग्लोबल पोजिशनिंग सिस्टम (जीपीएस) और हेडिंग सेंसर सहित विभिन्न सेंसर से डेटा को एकीकृत करता है।
तटीय क्षेत्रों में पोत ट्रैकिंग की सटीक जानकारी देने के लिए एक हेडिंग सेंसर शामिल है, जिससे जहाज की पहचान और आसपास के क्षेत्र की गतिविधियों के बारे में जानकारी मिलती है। यह इकाई समुद्री संचालन में विश्वसनीयता सुनिश्चित करने के लिए प्राथमिक जनरेटर आपूर्ति और माध्यमिक बैटरी आपूर्ति के बीच एक ऑटो-चेंजओवर तंत्र के साथ एक स्थिर बिजली आपूर्ति बनाए रखती है। इन जहाजों से कम से कम 40 समुद्री मील प्रति घंटे की अधिकतम गति की उम्मीद की जाती है, जिससे चुनौतीपूर्ण समुद्री परिस्थितियों में भी त्वरित प्रतिक्रिया क्षमता सुनिश्चित होगी।
एनएचएआई को डीपीआर तैयार करने में कठिनाइयों का सामना करना पड़ रहा है,कंपनियां नई प्रौद्योगिकी स्वीकार करने को तैयार नहीं : गडकरी
नई दिल्ली
केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी ने कहा कि भारतीय राष्ट्रीय राजमार्ग प्राधिकरण (एनएचएआई) को विस्तृत परियोजना रिपोर्ट (डीपीआर) तैयार करने में कठिनाइयों का सामना करना पड़ रहा है, क्योंकि संबंधित कंपनियां नई प्रौद्योगिकी स्वीकार करने को तैयार नहीं हैं।
सड़क परिवहन एवं राजमार्ग मंत्री ने कहा कि सरकार नई प्रौद्योगिकियों के इस्तेमाल को प्रोत्साहित कर रही है।
'क्रिसिल इंडिया इंफ्रास्ट्रक्चर कॉन्क्लेव 2023' को संबोधित करते हुए गडकरी ने कहा कि इस्पात और सीमेंट उद्योग की बड़ी कंपनियां कीमतें बढ़ाने के लिए गुटबंदी कर रही हैं।
उन्होंने कहा, ‘‘..इस्पात उद्योग और सीमेंट उद्योग…जब भी उन्हें मौका मिलता है वे गुट बनाते हैं और कीमतें बढ़ा देते हैं।''
अपने स्पष्ट विचारों के लिए पहचाने जाने वाले गडकरी ने कहा, ‘‘एनएचएआई के लिए डीपीआर तैयार करना एक बड़ी समस्या है… किसी भी परियोजना में कहीं भी कोई सटीक डीपीआर नहीं है।''
उन्होंने कहा, ‘‘डीपीआर बनाते समय वे (डीपीआर बनाने वाली कंपनियां) नई प्रौद्योगिकी, नवाचार, नए शोध को स्वीकार करने के लिए तैयार नहीं हैं और यहां तक कि डीपीआर का मानक इतना कम है कि हर जगह सुधार की अतिरिक्त गुंजाइश है।''
भारत में उच्च लॉजिस्टिक्स लागत पर उन्होंने बताया कि भारत में लॉजिस्टिक्स लागत 14-16 प्रतिशत है, जबकि चीन में यह 8-10 प्रतिशत है।