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2018 में कांग्रेस ने बिलासपुर की 24 में से अधिकांश पर बदला था चेहरा

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रायपुर.

छत्‍तीसगढ़ विधानसभा चुनाव में वर्ष-2018 में जब प्रदेशभर में कांग्रेस के पक्ष में लहर चल रही थी, उस दौर में कांग्रेस के रणनीतिकारों ने राजनीतिक दृष्टिकोण से सफल प्रयोग किया था। उम्मीदवारों के चेहरे बदल दिए गए थे। नए चेहरों के दम पर राजनीतिक बिसात बिछाई और काफी हद तक सफल भी रहे। जिन चेहरों पर कांग्रेस ने दांव खेला, उन लोगों ने भी निराश नहीं
किया। कांग्रेस के पक्ष में चल रही लहर और अपनी ऊर्जा का पूरा-पूरा उपयोग उम्मीदवारों ने किया। नतीजा हम सबके सामने है। इसका फायदा कांग्रेस को मिला।

नए उम्मीदवार होने के कारण व्यक्तिगत रूप से नकारात्मक छवि प्रत्याशी की नहीं रही। दूसरी तरफ राज्य की सत्ता पर बीते 15 वर्षों से काबिज भाजपा ने उन्हीं चेहरों पर दांव खेला जो विधायक पद पर थे या फिर वर्ष 2013 का चुनाव हार गए थे। नए चेहरों पर दांव खेलना और चुनाव मैदान में उतारने के अपने फैसले के चलते राजनीतिक रूप से कांग्रेस फायदे में रही।
भाजपा के लिए राहत वाली बात यह रही कि बिलासपुर व जांजगीर-चांपा जिले में कांग्रेस के पक्ष में लहर के बाद भी संतोषजनक स्थिति में रही। जांजगीर-चांपा जिले में बसपाई रणनीतिकारों ने भी चेहरा बदलने का राजनीतिक रूप से जोखिम उठाया था। हालांकि उनको लाभ ही मिला। परंपरागत सीट पर कब्जा जमाने में बसपाई रणनीतिकार सफल रहे।

जांजगीर-चांपा जिले की ऐसी चली थी राजनीति
पामगढ़ विधानसभा क्षेत्र से वर्ष-2013 में कांग्रेस ने शेषराज हरबंश को टिकट दिया था। वहीं भाजपा ने अंबेश जांगड़े को चुनाव मैदान में उतारा था। जांगड़े चुनाव जीतने में सफल रहे। बसपा के गढ़ पर भाजपा ने कब्जा किया। वर्ष-2018 में भाजपा ने जांगड़े पर फिर भरोसा जताया। वहीं कांग्रेस ने हरबंश की जगह गोरेलाल बर्मन को चुनाव मैदान में उतारा। बसपा ने दूजराम बौद्ध की जगह इंदू बंजारे को टिकट दिया। नए चेहरे का असर ऐसा हुआ कि बसपा अपने गढ़ पर कब्जा जमाने में सफल रही। अकलतरा विधानसभा क्षेत्र में उम्मीदवार का चेहरा वही था पर पार्टी बदली हुई थी। वर्ष-2013 के विधानसभा चुनाव में बसपा ने अकलतरा से सौरभ सिंह को उम्मीदवार बनाया था। वे चुनाव जीते। पांच साल के भीतर विधानसभा की राजनीति तेजी के साथ घूमी और सौरभ सिंह बसपा से भाजपा में शामिल हो गए। टिकट मिल गया और विधायक भी बन गए। सक्ती विधानसभा क्षेत्र में कांग्रेस व भाजपा दोनों ने प्रयोग किया। कांग्रेस ने डा चरणदास महंत को टिकट दी और जीत गए।

बिलासपुर में भाजपा मजबूत
बिलासपुर जिले की राजनीति पर नजर डालें तो यहां भाजपा की स्थिति मजबूत है। हालांकि चेहरा बदलने का लाभ कांग्रेस को मिला। कांग्रेस ने जिले की छह में से पांच सीटों पर नए चेहरे को चुनाव मैदान में उतारा था। बिलासपुर से शैलेष पांडेय, बिल्हा से राजेंद्र शुक्ला, तखतपुर से रश्मि सिंह, बेलतरा से राजेंद्र साहू, कोटा से विभोर सिंह व मस्तूरी से दिलीप लहरिया को टिकट दिया था। छह में से पांच नए चेहरे थे। इनमें से तखतपुर से रश्मि सिंह और बिलासपुर से शैलेष पांडेय ही चुनाव जीतने में सफल रहे।

ननकी और जयसिंह के इर्द-गिर्द कोरबा की राजनीति
कोरबा जिले की राजनीति भाजपा व कांग्रेस के दो दिग्गज नेता ननकीराम कंवर और जयसिंह अग्रवाल के इर्द-गिर्द घूमती नजर आती है। कोरबा से जयसिंह अग्रवाल और रामपुर विधानसभा से ननकीराम कंवर लगातार जीत दर्ज करते आ रहे हैं। कोरबा विधानसभा में भाजपा लगातार चेहरा बदल दे रही है, उसके बाद भी जीत दर्ज नहीं कर पाई है। गोंडवाना गणतंत्र पार्टी के सुप्रीमो हीरा सिंह मरकाम के चलते पाली तानाखार विधानसभा क्षेत्र की अपनी अलग पहचान बनी। रामदयाल उइके लगातार दो बार विधायक निर्वाचित हुए। कांग्रेस छोड़कर भाजपा में शामिल होने के बाद परिस्थितियां बदली और वे चुनाव हार गए।

मुंगेली में खाता नहीं खोल पाई कांग्रेस
बिलासपुर संभाग के ही मुंगेली जिले में लोरमी और मुंगेली दो विधानसभा क्षेत्र को शामिल किया गया है। प्रदेशभर में चली लहर के बाद भी कांग्रेस के प्रत्याशियों ने अपना खाता भी नहीं खोल पाए। मुंगेली विधानसभा से भाजपा के पूर्व मंत्री पुन्नूलाल मोहले और लोरमी से जनता कांग्रेस छत्तीसगढ़ के धर्मजीत सिंह चुनाव जीते।

अकलतरा की तरह चंद्रपुर में भी बदली तस्वीर
अकलतरा विधानसभा की तरह चंद्रपुर विधानसभा में भी राजनीतिक तस्वीर उसी अंदाज में बदली। वर्ष 2013 के विधानसभा चुनाव में बसपा ने रामकुमार यादव को प्रत्याशी बनाया था। भाजपा ने युद्धवीर सिंह की जगह उनकी पत्नी संयोगिता सिंह को टिकट दिया था। रामकुमार यादव चुनाव जीत गए। वर्ष 2018 में चंद्रपुर विधानसभा में चेहरा वही था, पार्टी बदल गई थी। रामकुमार यादव बसपा छोड़कर कांग्रेस में शामिल हो गए। कांग्रेस ने चुनाव मैदान में उतारा। दूसरी बार वे चुनाव जीते।