ओटावा
कनाडा के प्रधानमंत्री जस्टिन ट्रूडो ने ऐसा लगता है कि खालिस्तान मामले पर आंख बंद रखने का फैसला किया है। तभी तो उनके करीबी और लिबरल पार्टी के सांसद हर वह काम कर रहे हैं जो भारत के हितों के खिलाफ है। ट्रूडो के करीबी सुख धालीवाल को सरे के उसी गुरुद्वारे में देखा गया है जहां पर खालिस्तानी आतंकी हरदीप सिंह निज्जर की हत्या हुई थी। सरे का गुरुद्वारा इस समय भारत और कनाडा के बीच तनाव का मुख्य केंद्र बना हुआ है। सुख धालीवाल जिनका पूरा नाम सुखमिंदर है, उन्होंने भारतीय मीडिया से बातचीत में गोल्डी बरार और अर्श दल्ला समेत तमाम खालिस्तानियों के प्रत्यर्पण को खारिज कर दिया। उनका कहना था कि वह कनाडा को बचाना चाहते हैं।
क्या था गुरुद्वारे जाने का मकसद
नेटवर्क 18 की एक रिपोर्ट के अनुसार धालीवाल ने कनाडा और उत्तरी अमेरिका के बाकी हिस्सों से खालिस्तान समर्थक रैली के लिए आए सिखों का समर्थन मांगने के लिए गुरुद्वारे का दौरा किया था। धालीवाल की मानें तो भारत और कनाडा 'अच्छे संबंध' साझा करते हैं। लेकिन वह यह कहने से भी नहीं चूकते हैं कि ट्रूडो के पास भारत के खिलाफ 'विश्वसनीय जानकारी और सबूत' थे। तभी उन्होंने संसद में भारत पर आरोप लगाया था। धालीवाल ने एफआईआर और सबूतों के सवाल पर जवाब दिया कि समय ही इसका जवाब देगा। उन्होंने कनाडा की न्याय प्रणाली को निष्पक्ष करार दिया है।
साल 2019 में मिले निज्जर से
धालीवाल ने साल 2019 में निज्जर से उस समय मुलाकात की पुष्टि की है जब उसके खिलाफ रेड कॉर्नर नोटिस जारी किया गया था। धालीवाल इस बात का जवाब देने से बचते हैं कि जब भारत ने निज्जर को साल 2020 में आतंकी घोषित किया था तो क्या उन्होंने एक सांसद के रूप में सरकारी अधिकारियों को अलर्ट किया था। इंटेलीजेंस सूत्रों के हवाले से रिपोर्ट में कहा गया है कि ट्रूडो के करीबी सहयोगी सुख धालीवाल ने निज्जर को कनाडा में अपना नेटवर्क स्थापित करने में मदद की थी। निज्जर, धालीवाल के संसदीय क्षेत्र सरे के गुरुद्वारे में ही रहने लगा था।
निज्जर को कैसे की मदद
खालिस्तान टाइगर फोर्स (केटीएफ) का मुखिया निज्जर नो-फ्लाई लिस्ट में था। लेकिन धालीवाल ने कनाडा में निज्जर के स्थायी निवास की व्यवस्था की थी। धालीवाल कनाडा की इमीग्रेशन कमेटी के चेयरपर्सन हैं। सूत्रों के मुताबिक सिखों में उन्हें मिलने वाले विशाल समर्थन आधार और आईएसआई से उनकी करीबी के चलते उन्हें यह पद मिला है। रिपोर्ट में सूत्रों के हवाले से बताया गया है कि निज्जर एक इमिग्रेशन रैकेट चला रहा था जिसमें लोगों को कनाडा लाया जाता था और भारत विरोधी गतिविधियों में शामिल किया जाता था। निज्जर को धालीवाल का समर्थन प्राप्त था। रैकेट के जरिए होने वाली इनकम को दोनों आपस में बांट लेते थे।