छत्तीसगढ़ की गोधन न्याय योजना की तर्ज पर केंद्र भी ख़रीदे किसानों से गोबर
नई दिल्ली। लोकसभा में मंगलवार को पेश की गई एक रिपोर्ट में, कृषि संबंधी स्थायी समिति ने केंद्र सरकार से छत्तीसगढ़ की गोधन न्याय योजना की तर्ज पर किसानों से गोबर खरीदने की योजना लॉन्च करने की सिफारिश की है। समिति के मुताबिक ऐसा किए जाने से किसानों की आय भी बढ़ेगी और रोजगार के अवसरों में भी वृद्धि होगी।
मंगलवार को लोकसभा में पेश की गई एक रिपोर्ट में कृषि संबंधी स्थायी समिति द्वारा केंद्र सरकार से सिफारिश की है कि वह किसानों से गोबर खरीदने की योजना शुरू करे। इस रिपोर्ट में कांग्रेस शासित छत्तीसगढ़ सरकार की गोधन न्याय योजना का भी हवाला दिया गया है। बता दें कि गोधन न्याय योजना के अंतर्गत कांग्रेस सरकार गाय का गोबर किसानों से एक तय कीमत पर खरीदती है।
2021-22 के लिए कृषि, सहकारिता और किसान कल्याण विभाग की अनुदानों की मांगों की जांच करते हुए रिपोर्ट में कहा गया है, समिति का मानना है कि किसानों से डायरेक्ट गोबर की खरीद से ना केवल उनकी आय में वृद्धि होगी बल्कि रोजगार के अवसर भी बढ़ेंगे। इसके साथ ही छुट्टा पशुओं की समस्या का भी निदान हो सकेगा और देश में जैविक खेती को बढ़ावा मिलने में आसानी होगी।
रिपोर्ट में कहा गया किसानों से गोबर खरीदने के लिए योजना शुरू हो
रिपोर्ट में आगे कहा गया है, ऐसे में समिति ये सिफारिश करती है कि कृषि विभाग पशुपालन और डेयरी विभाग के सहयोग से किसानों से गोबर खरीदने के लिए एक योजना शुरू करे।
इस रिपोर्टम ही छत्तीसगढ़ की गोधन न्याय योजना का जिक्र किया गया है जिसमें छत्तीसगढ़ सरकार द्वारा किसानों से दो रुपए प्रति किलो के भाव पर गाय का गोबर खरीदा जाता है और फिर इसे जैव उर्वरक खाद बनाए जाने के बाद 8 रुपए प्रति किलो के भाव पर बेच दिया जाता है।
बता दें कि रिपोर्ट में इस तरह की सिफारिशों से पहले बीजेपी सांसद पर्वतागौड़ा चंद्रनागौड़ा गड्डीगौदर के नेतृत्व वाली कमेटी ने कृषि मंत्रालयन के अधिकारियों से कहा है कि वे किसानों से पशुओं का गोबर खरीदने की योजना लॉन्च करें।
आवंटित हुई राशि को लौटाने का मुद्दा भी उठाया गया
लोकसभा में पेश की गई इस रिपोर्ट में केंद्र सरकार ने कृषि मंत्रालय के लिए आवंटित हुई राशि को लौटाने का मुद्दा भी उठाया गया है। रिपोर्ट में कहा गया है कि 2019-20 में विभाग ने 34,517।70 करोड़ रुपए सरेंडर किए, जबकि 2020-21 में ये राशि 17,849 करोड़ रुपए रही। इस तरह बड़ी मात्रा में फंड्स छोड़ने से कई योजनाओं के कार्यान्वयन पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ सकता है।