मुंगेली/ देश में NGO (गैर सरकारी संगठन) का मकड़जाल चरम पर पहुंच चुका है। इस समय देशभर में लगभग 30 लाख स्वंयसेवी संगठन (एनजीओ) पंजीकृत हैं। अलग-अलग राज्यों में इन स्वयंसेवी संस्थाओं का महाजाल फैला हुआ है। एक छोटे से राज्य में भी हजारों स्वयं संस्थाओं का साम्राज्य स्थापित है। ये गैर सरकारी संगठन (एनजीओ) सरकारी अनुदान (ग्रान्ट) और सामाजिक दान व चन्दा लेकर अपनी गतिधियां संचालित करते हैं। देश में पंजीकृत लगभग 30 लाख एनजीओ में से कई लाख एनजीओ ऐसी भी हैं, जो विदेशों से बड़ी संख्या में पैसा हासिल कर रहे हैं। इनमें से अधिकतर तो आयकर रिटर्न भी नहीं भरते हैं और उनका हिसाब भी कोई लेने वाला नहीं है। ऐसे एनजीओ धड़ल्ले से चल रहे हैं।
अधिकांश एनजीओ समाजसेवा के नाम पर गोरखधंधा करते हैं। ऐसे एनजीओ पर अंकुश लगाना बहुत ही जरूरी है। इसके लिए सबसे पहले इन सामाजिक संस्थाओं के पंजीकरण प्रक्रिया को बदलने की आवश्यकता है एनजीओ के पंजीकरण की प्रक्रिया इतनी सरल है कि कोई भी व्यक्ति कुछ कागजों की खानापूर्ति करके अपना एनजीओ बना लेता है। आश्चर्य की बात तो यह है कि कई शातिर लोगों ने तो संस्थाओं का पंजीकरण करवाने की दुकान ही खोल रखी हैं। ये लोग एनजीओ पंजीकरण से लेकर प्रोजेक्ट बनाने तक का ठेका लेते हैं और बदले में मुंहमांगी रकम ऐंठ लेते हैं। आश्चर्य की बात तो यह है कि ये ठेकेदार प्रत्येक वित्तीय वर्ष के अंत में पंजीकृत संस्था की वार्षिक गतिविधियों से लेकर उसके खर्च तक के दस्तावेज भी तैयार करके देते हैं, भले ही संस्था ने किसी को एक गिलास पानी तक न पिलाया हो। कूटरचित उन दस्तावेजों का कोई आधार नहीं होता, ऐसे शातिर लोग अपने पूरे परिवार और सगे संबंधियों के नाम पर दर्जनों एनजीओ का संचालन इसी तरह कागजों में करते रहते हैं। शातिर लोग समाजसेवा के नाम पर करोड़ों रूपया देश-विदेश से सामाजिक दान के रूप में प्रतिवर्ष हासिल करते हैं और किसी को कानोंकान तक खबर नहीं लगती है।
सरकार व समाज को करोड़ों का चूना लगाकर ऐशोआराम व अय्याशी का जीवन जीते हैं।
मुंगेली में भी कुछ यही किस्सा हैं जहाँ कुछ तथाकथित संस्थाए जो जनहितकारी कार्य करने का ढोंग करते फिरते हैं उन्हीं संस्थाओं के कुछ मास्टरमाइंड सदस्य ऐसे भी हैं जो अपनी संस्था के बहाने NGO के माध्यम से लाखों-करोड़ों डकारने की फिराक में हैं, जानकारों की माने तो कई स्वार्थवादी संस्थाओं के द्वारा समय-समय पर गरीब, ग्रामीण अंचल, महिलाओं-बच्चों, निसहाय लोगों के लिए अगर हजारों रुपये की राशि में खर्च करेंगे तो शासन से लाखों-करोड़ों का अनुदान पाने जुगाड़ लगाते रहते हैं, जिसके चलते उनकी स्वार्थी और जेब भरने की कला दिखाई देती हैं, मुंगेली के चौक-चौराहों में अक्सर यह चर्चा का विषय बना रहता हैं कि फलाँ-फलाँ संस्था द्वारा आये दिन सोशल मीडिया में अपने द्वारा स्वार्थवश किये गए कार्यो का ढिंढोरा पीटा जाता हैं, समय-समय पर कुछ तथाकथित पत्रकारों को भी विज्ञापन या अन्य चीज का लालच दे उनसे समाचार छपवाने का प्रयास किया जाता हैं क्योंकि शासन से अनुदान लेने के लिए किसी भी संस्था को उनके द्वारा किये गए कार्यो का बखान करना होता हैं चाहे वो फोटोग्राफी के माध्यम से हो या अखबारों के कतरनों के माध्यम से…बस इसी तरह की प्लानिंग मुंगेली के कुछ तथाकथित समाजसेवी कर रहे हैं जिसकी मुंगेली के बुद्धिजीवियों और नेताओं ने कड़ी आलोचना की हैं, मुंगेली के कुछ नेताओं ने यहां तक कहा कि केंद्र और राज्य सरकारों को पत्र लिख मुंगेली के इन तथाकथित संस्थाओं को अनुदान देने या न देने के संबंध में पत्र लिखा जाएगा। मुंगेली के कुछ ढोंगी समाजसेवक ऐसे भी हैं जो सामाजिक संस्था के नाम पर अपनी दुकानदारी चला रहे हैं, सोशल मीडिया में खुद को बहुत ही ईमानदार और स्वच्छ छवि का बताने या जताने हर संभव प्रयास किया जाता हैं परंतु उनकी वास्तविक स्थिति कुछ और होती हैं, ऐसे स्वार्थी समाजसेवक अधिकारियों के शरण में आये दिन देखे जा सकते हैं क्योंकि अधिकारियों को अपने कार्यक्रमों में अतिथि बनाकर उनसे कई प्रकार से काम कराया जा सकता हैं।