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आज होगी किसान संगठनों और सरकार के बीच 11वें दौर की बैठक

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32 में से 15 किसान संगठन सरकार के प्रस्ताव पर राजी
नई दिल्ली।
दिल्ली की सीमाओं पर जारी किसान आंदोलन का आज 58वां दिन है। किसान संगठनों और सरकार के प्रतिनिधियों के बीच 11वें दौर की बैठक आज यानी शुक्रवार को होनी है। किसान फिलहाल 26 जनवरी को ट्रैक्टर मार्च निकालने पर अड़े हैं। इस बीच सरकार के साथ बातचीत कर रहे करीब 32 किसान संगठनों में से 15 किसान संगठन सरकार के प्रस्ताव को मानने के लिए राजी हो गए हैं।
सूत्रों के मुताबिक गुरुवार को किसान संगठनों के बीच बातचीत हुई। भारतीय किसान मंच के अध्यक्ष बूटा सिंह ने बताया कि 32 में से 15 किसान संगठन सरकार के प्रस्ताव को स्वीकार करने के लिए राजी हो गए हैं। जबकि 17 किसान यूनियन ने सरकार के प्रस्ताव को खारिज कर दिया है।
दरअसल बुधवार को सरकार के साथ मीटिंग के बाद गुरुवार को किसान संगठनों की बैठक हुई। 32 किसान संगठन के नेताओं ने सरकार के प्रस्ताव पर चर्चा की। सरकार ने किसान संगठनों को समिति बनाकर और कृषि कानून को डेढ़ साल के लिए स्थगित करने का प्रस्ताव दिया था।
सरकार से आज 11वें दौर की वार्ता
हजारों की संख्या में किसान दिल्ली की सीमाओं पर पिछले करीब दो महीने से प्रदर्शन कर रहे हैं। वे नए कृषि कानूनों को रद्द करने की मांग कर रहे हैं। प्रदर्शनकारी किसानों का आरोप है कि इन कानूनों से मंडी व्यवस्था और एमएसपी पर खरीद की प्रणाली समाप्त हो जाएगी और किसानों को बड़े कारपोरेट घरानों की कृपापर रहना पड़ेगा। हालांकि, सरकार इन आशंकाओं को खारिज कर चुकी है। किसानों के साथ सरकार की 11वें दौर की बैठक 22 जनवरी को होगी।
किसानों ने कहा है कि 26 जनवरी को राष्ट्रीय राजधानी के बाहरी रिंग रोड पर ही ट्रैक्टर रैली निकाली जाएगी। पुलिस और किसान संगठनों के बीच बैठक के बाद स्वराज अभियान के नेता योगेंद्र यादव ने कहा कि पुलिस चाहती थी कि किसान अपनी ट्रैक्टर रैली दिल्ली के बाहर निकालें। हम दिल्ली के भीतर शांतिपूर्ण ढंग से अपनी परेड निकालेंगे। वहीं, पुलिस अधिकारियों ने किसान संगठनों को इस बात के लिए मनाने का प्रयास किया कि वे ट्रैक्टर रैली बाहरी रिंग रोड की बजाय कुंडली-मानेसर पलवल एक्सप्रेस पर निकालें।
सुप्रीम कोर्ट ने तीनों कृषि कानूनों की संवैधानिक वैधता पर सवाल उठाने वाली याचिकाओं पर सुनवाई करते हुए हाल ही में इन कानूनों को लागू करने पर रोक लगा दी थी। साथ ही किसानों और सरकार के बीच बातचीत और कानूनी राय देने के लिए चार सदस्यीय समिति गठित कर दी थी। लेकिन इसके अगले ही दिन समिति के एक सदस्य ने समिति से खुद को अलग कर लिया। अब सरकार भी किसानों को यह प्रस्ताव दे चुकी है कि वह तीनों कानून को डेढ़ साल तक स्थगित रखकर एक समिति का गठन कर बातचीत करने को तैयार है।