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ईरानी केसर ने बिगाड़ा कश्मीरी केसर का बाज़ार, 70 रुपये प्रति ग्राम तक गिरा भाव

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नई दिल्ली। सूखी मेवा हो या मसाले, रेट के मामले में दोनों के बीच केसर ही है जो लाखों रुपये किलो के हिसाब से बिकती है। और अगर उसके दाम भी इतने गिर जाएं कि कारोबारी सकते में आ जाएं तो चौंकना लाज़मी है। भारतीय बाज़ार में ईरानी केसर के आने के बाद कुछ ऐसा ही हुआ है। कश्मीरी केसर का बाज़ार औंधे मुंह आ गिरा है। केसर के रेट भी कहें तो आसामान से ज़मीन पर आ गए हैं। अब बिना जेब की परवाह किए केसर की चाय और केसर के दूध का मज़ा लिया जा सकता है। वहीं जानकारों की मानें तो एक सामान्य तापमान पर रखने से लंबे समय तक केसर खराब भी नहीं होती है और न ही इसके स्वाद पर कोई फर्क पड़ता है। कोरोना-लॉकडाउन से पहले सामान्य कश्मीरी केसर 200 प्रति ग्राम तक बिक रही थी। लेकिन जब लॉकडाउन के बाद बाज़ार खुले तो नवरात्र और दिवाली के मौके पर यही केसर 150 के भाव पर आ गई थी। लेकिन जैसे ही सर्दियां शुरु हुई और डिमांड बढ़ी तो यह केसर फिर से 200 और 220 रुपये तक के रेट पर पहुंच गई। लेकिन इसी दौरान बाज़ार में ईरानी सुपर नागिन केसर ने भी भारतीय बाज़ार में दस्तक दे दी।
यह इतनी सस्ती आई की देखते ही देखते कश्मीरी केसर का बाज़ार औंधे मुंह गिर गया। दिल्ली में केसर की होलसेल का कारोबार करने वाले नसीम शेख बताते हैं कि ईरानी केसर रिटेल बाज़ार में प्रति ग्राम 80 से 90 रुपये तक बड़ी आसानी से बिक रही है। कहीं-कहीं कारोबारी मुकाबले के चलते 70 और 75 रुपये प्रति ग्राम भी बिक रही है।
केसर के जानकार सेठ गिरधारी लाल गोयल बताते हैं कि इस बार केसर के दाम गिरने की एक बड़ी वजह ईरानी केसर तो है ही, दूसरी ओर देश में भी अब कश्मीर के अलावा दूसरे इलाकों में भी थोड़ी-थोड़ी केसर की खेती होने लगी है। वहीं इंस्टीट्यूट ऑफ हिमालयन बायोरिसोर्स टेक्नोलॉजी के निदेशक डॉ. संजय सिंह उत्तराखंड और हिमाचल प्रदेश में केसर की खेती के अच्छे अवसर पैदा करने के लिए तकनीकी सहायता उपलब्ध करा रहे हैं। हरियाणा में भी एक किसान ने केसर उगाने की कोशिश की है। लेकिन अभी लैब रिपोर्ट बताएगी कि उस केसर में कितने प्रतिशत तक अर्क (रस) है।