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सुप्रीम कोर्ट की झारखंड सरकार को फटकार, कहा- अपनी मर्जी से रेवड़ियां बांटने की मानसिकता छोड़ें

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सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि अपनी सभी कार्रवाई में राज्य निष्पक्ष और पारदर्शी तरीके से काम करने के लिये बाध्य है।
रांची।
सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को एक औद्योगिक इकाई को नीतिगत लाभ के तहत कानूनी पात्रता से वंचित करने के मामले में झारखंड सरकार को आड़े हाथ लेते हुये कहा कि राज्य के शासक होने के नाते अपनी ‘मर्जी से रेवड़ियां’ देने की ‘औपनिवेशिक मानसिकता’ को त्यागना चाहिए और वह ‘निष्पक्ष’ और ‘पारदर्शी’ तरीके से काम करने के लिये बाध्य है.
न्यायमूर्ति धनंजय वाई चंद्रचूड़ और न्यायमूर्ति इन्दु मल्होत्रा की पीठ ने कहा, ‘‘राज्य की जवाबदेही और नीतिगत दस्तावेज के अनुसार अपनाई गयी जिम्मेदारी दोनों ही इस तरह की राज्य सत्ता के गुमान के खिलाफ है’
पीठ ने कहा, राज्य को इस औपनिवेशिक गुमान को त्यागना चाहिए कि वह अपनी मर्जी से रेवड़ियां बांटने वाला शासक है। उसकी नीतियां इस अपेक्षा को बढ़ावा देती हैं कि राज्य सरकार सार्वजनिक दायरे में रखी गयी नीतियों के अनुसार काम करेगी।अपनी सभी कार्रवाई में राज्य निष्पक्ष और पारदर्शी तरीके से काम करने के लिये बाध्य है। यह संविधान के अनुच्छेद 14 में मनमर्जी से कार्रवाई करने के विरूद्ध प्रदत्त बुनियादी गारंटी है’’
यह विवाद झारखंड की 2012 की औद्योगिक नीति के एक उपबंध से संबंधित है, जिसके अंर्तगत एक कंपनी को अपने उपभोग के लिये स्थापित विद्युत संयंत्र से पांच साल के लिये विद्युत शुल्क के 50 प्रतिशत के भुगतान से छूट मिलेगी।
राज्य सरकार ने ब्रह्मपुत्र मेटालिक्स लिमिटेड को 50 प्रतिशत की विद्युत शुल्क छूट का लाभ देने के हाईकोर्ट के आदेश को शीर्ष अदालत में चुनौती दी थी।
शीर्ष अदालत राज्य सरकार की दलीलों से सहमत नहीं हुई और उसने कहा कि राज्य की औद्योगिक नीति के तहत ब्रह्मपुत्र मेटालिक्स लिमिटेड विद्युत शुल्क में छूट की हकदार है.
हालांकि, शीर्ष अदालत ने हाईकोर्ट के आदेश में यह संशोधन कर दिया कि कंपनी वित्तीय वर्ष 2011-2012 के लिये इस छूट की हकदार नहीं है, क्योंकि औद्योगिक नीति में प्रावधान है कि उत्पादन शुरू होने के बाद के वित्तीय वर्ष से यह लाभ मिलेगा।
पीठ ने इस कंपनी को वित्तीय वर्ष 2012-13 और 2013-14 के लिये विद्युत शुल्क से छूट देने के हाईकोर्ट के आदेश की पुष्टि की।