कोरोना संक्रमण के चलते सार्वजनिक आयोजन बैल दौड़ रद्द रहेगी
रायपुर। प्रतिवर्ष की भांति इस वर्ष भी भादो कृष्ण पक्ष की अमावस्या तिथि के अवसर पर प्रदेश में मनाये जाने वाला पर्व आज ग्रामीण क्षेत्रों में किसानों द्वारा अपने बैलों का श्रृंगार कर विधिवत पूजा कर मनाया जा रहा है। कोरोना वायरस महामारी कोविड 19 की केंद्र सरकार की गाइड लाइन का पालन करते हुए इस वर्ष अखिल भारतीय यादव महासभा के प्रदेश अध्यक्ष माधवलाल यादव द्वारा दी गई जानकारी के अनुसार परंपरागत बैल दौड़ का आयोजन कोरोना संक्रमण के कारण रावण भांठा मैदान में आयोजित नहीं किया जाएगा। उक्त आयोजन विभिन्न संस्थाओं द्वारा ऑन लाइन प्रतियोगिता के माध्यम से किया जा रहा है। ज्ञातव्य है कि पोला प्रदेश की संस्कृति से ओतप्रोत ग्रामीण क्षेत्र के किसानों का प्रमुख उत्सव है जिसमें फसल की पूजा के साथ ही बैलों का श्रृंगार, पूजन एवं बच्चों के लिए छत्तीसगढ़ी व्यंजन के साथ ही लकड़ी के बने बैलों को दौड़ाकर अन्य खिलौनों के साथ बच्चे पोला पर्व का पूरा आनंद उठाते हैं।
छत्तीसगढ़ राज्य भारत देश का एक मात्र ऐसा राज्य है जो पूर्णत: कृषि कार्य प्रधान राज्य है। यहाँ के निवासी पूरे वर्ष भर खेती कार्य मे लगे रहते है। धान की खेती यहाँ की प्रमुख फ सल है। यहाँ के निवासियों ने अपनी सांस्कृतिक विरासत को कुछ इस तरह संजोकर रखा है, कि कृषि कार्यो के दौरान साल के विभिन्न अवसरों पर- खेती कार्य आरंभ होने के पहले अक्ती, फ सल बोने के समय सवनाही, उगने के समय एतवारी-भोजली, फ सल लहलहाने के समय हरियाली, आदि अवसरों व ऋ तु परिवर्तन के समय को धार्मिक आस्था प्रकट कर पर्व-उत्सव व त्योहार के रूप मे मनाते हुए जनमानस मे एकता का संदेश देते है। राज्य के निवासी, पेड़-पौधों, जीव-जंतुओं तथा प्रकृति को भी भगवान की ही तरह पूजते है।
बैलो के श्रृँगार व गर्भ पूजन का पर्व-पोला
पोला पर्व के अवसर पर तरह तरह के व्यंजन बनाए जाते है। पोला को छत्तीसगढी मे पोरा भी कहते है। पोला पर्व में बैलों के श्रृँगार व गर्भ पूजन किया जाता है। किसान अपने गौमाता व बैलों को नहलाते है । उनके सींग व खूर में पेन्ट या पालिश लगाकर कई प्रकार से सजाते है। गले मे घुंघरू, घंटी या कौंडी से बने आभूषण पहनाते हंै। तथा पूजा करके आरती उतारते हंै।
बैलों की पूजन कर मनाते है यह त्योहार
भाद्रपद मास की अमावस्या तिथि को मनाया जाने वाला यह पोला त्योहार, खरीफ फसल के द्वितीय चरण का कार्य (निंदाई कोडाई ) पूरा हो जाने तथा फसलों के बढऩे की खुशी मे किसानों द्वारा बैलो की पूजन कर कृतज्ञता दर्शाते हूए प्रेम भाव अर्पित करते हुए यह त्योहार मनाते है क्योंकि बैलो के सहयोग द्वारा ही खेती कार्य किया जाता है।
पोला पर्व की पूर्व रात्रि को गर्भ पूजन किया जाता है। ऐसा माना जाता है कि इसी दिन अन्न माता गर्भ धारण करती है। अर्थात धान के पौधों मे दूध भरता है। इसी कारण पोला के दिन किसी को भी खेतों मे जाने की अनुमति नही होती।
छत्तीसगढी पकवान
सूबह होते ही गृहिणी घर मे गुडहा चीला, अनरसा, सोहारी, चौसेला, ठेठरी, खूरमी, बरा, मुरकू , भजिया , मूठिया , गुजिया, तसमई आदि छत्तीसगढी पकवान बनाने मे लग जाती है। इस दिन बच्चे मिट्टी के बैल दौड़ाते है। ग्रामीण अंचल में बैल दौड़ का आयोजन किया जाता है। साथ ही कई प्रतिस्पर्धाओं का भी आयोजन किया जाता है।